Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 43
________________ जायेंगे जब ये बाते मैं भविष्य में श्रवण करूँगा तब मेरी कैसी विचित्र गति होगी ? फिरतो मुझे भी जीवित रहने का क्या प्रयोजन ? इसलिए जब तक प्रातःकाल होने न पावे तब तक यहीं पर खडा रहकर दमयंती की रक्षा करूँ, तत्पश्चात् वह चाहे कहीं भी जा सकती है। राजा दमयंती तरफ मुंह घुमाकर चौकी करने लगे। धरती पर निर्नाथ पड़ी हुई उसे देखकर राजाने पुनः सोचा केवल एक ही वस्त्र पहिनी हुई दमयंती रास्ते की भीखारिण के माफिक सोई हुई है, जो नल की पटरानी है जिसके भाग्य में सूर्यनारायण को भी देखना पाप माना गया है, आज पूरी दुनिया असूर्यम्पश्या दमयंती को देखने लगेगी तब मुझे धिक्कार मिलने के सिवाय मेरे भाग्य में शेष कुछ भी नहीं रहेगा। मेरे ही कर्मों का दोष का कारण है कि, उचे खानदान में जन्मी हुई इसकी यह दशा हुई है। मैं यदि जुगार न खेलता तो मेरे सामने अंगूली भी कौन उठा सकता था / आज मैं हताश, हतप्रभ तथा किर्तव्यविमूढ बन गया हूँ जिससे इस महासती को छोड़ने की दशा में आ गया हूँ जभी तो हतपुण्यकर्मी मेरे जैसे पति के कारण पलंगो में पोढनेवाली दमयंती जमीन पर पड़ी है फिर भी मैं जीवित हूँ अथवा इसके वियोग में मैं जीवित भी नहीं रह सकुंगा तथा एकाकिनी दमयंती भी मेरे वियोग में जरुर कुछ कर बैठेगी। हाय रे? मेरी दुर्दशा कैसी विचित्र बन गई है, इन कारणों से मेरे चरणों की दासी को त्यागने का विश्वासघात करना पड़ा है अब जीना और मरना दोनों का साथ ही रहेगा। निकाचित कर्मों की सत्ता तथा उदयकाल ने जब आने की तैयारी कर ली है तो मानव मात्र के पवित्र विचार कहाँ तक टिकने वाले है ? अतः बुद्धि में वैपरित्य आया और राजा ने पुनः सोचा कि नरक के समान इस भयंकर वन का मुसाफिर मैं एकाकी रहूँ तथा मृगाक्षी दमयंती मेरी आज्ञा से चाहे अपने पिहर या ससुराल तरफ जाकर अपने स्वजनों के मध्य आराम से अपने दिन बीता सकेगी। यह 42 P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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