Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 42
________________ पत्नी के साथ किया हुआ विश्वासघात का पाप आनेवाले भवों में मेरी दशा कैसी करेगा ? इतना विचार सद्बुद्धि तथा विवेक से आया, परंतु कर्मों का भारा जिसके मस्तिष्क पर हो, उसे सद्बुद्धि का सहारा कब तक मिलनेवाला है ? एक भव में 12 घड़ी तक तपस्वी मुनिराज का किया हुआ अपमान, अप्रभाज तथा धर्मातराय का निकाचित पापकर्म राजारानी के मस्तक पर उदित होने की पूर्ण तैयारी करके बैठ, चुका होने से दुर्वद्विवश राजा ने सोचा कि घरवाली के कहने से ससुराल जाकर उनके शरण में समय विताना अधम इन्सान का कर्तव्य तो मैं दमयंती के पिता के घर कैसे जाऊँ ? क्योंकि मैं कौशल देश का राजाधिराज हूँ। इसलिए हृदय को वज्र जैसा बनाकर इसी जंगल में सोई हुई दमयंती को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाना यही मेरे जैसे मानी के लिए उत्तम है / अपने शियल ब्रम्हचर्य तया सतीधर्म के प्रभाव से दमयंती अपनी रक्षा स्वयं करने में समर्थ है, शास्त्रों ने भी पुकारा है कि, सतीओं का "शिलधर्म ही उनके शरीर का रक्षक हैं ऐसा सोचा कर नलने छुरी द्वारा अपनी अंगुली से लोही निकाला और दमयंती के वस्त्र पर लिखा कि , जिस वटवृक्ष के नीचे तुम भर निद्रा में सोई हुई हो उसी दिशा की तरफ तुम्हारे पिता का नगर है, और उसके विपरीत दिशा तरफ तुम्हारा ससुराल है, इन दोनों स्थानों में से जहाँ पर तुम्हारा मन साक्षी दे वहीं पर चली जाना, मैं दोनों देश तरफ जाने की इच्छा नहीं रखता हूँ" इसप्रकार लिखकर तथा शब्द बिना पेटभर रो लेने के बाद चोर के माफिक नलराजाने भी विश्वास से सोई हुई दमयंती को छोड़ कर चलने की तैयारी की। थोड़ी दूर पर जाने के पश्चात् नलने पीछे देखा दमयंती अभी भी निद्राधीन थी अतः राजा जल्दी से आगे बढ़ने लगा अभी तक दमयंती पूर्णरूप से अदृश्य नहीं थी फिर से नल को विचार आया, भया वह इस जंगल में सर्वथा एकाकिनी तथा सर्वथा निःसहाय दययंती को देखकर भूखा वाघ, सिंह तथा दूसरे और भी क्रूर पशु इसे जरुर खा 41 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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