Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 40
________________ कर्मों का उदय इस मनुष्य भव में आया है तो शांतिपूर्वक इसे अपन उतार दें इसी में फायदा है। इस प्रकार दोनों बात कर ही रहे थे, तब सूर्यनारायण भी अस्ताचल पर चलने को तैयार हुए, मानो ! अस्त होते होते भी संसार के इन्सान को कह रहे हैं कि, "सुख, संपत्ति, यौवन संयोग आदि भौतिक पदार्थ कभी भी हमेशा रहनेवाले नहीं होते हैं। मेरा ही उदाहरण प्रत्यक्ष है कि मेरे उदयकाल में संसार ने मेरा स्वागत किया था, श्रद्धापूर्वक अर्घ्य दिया था, परंतु अब मेरे सामने आकर मुझे सत्कारना तो दूर रहा, परंतु सामने देखनेवाला भी कोई नहीं है। इतना होते हुए भी मुझे दुःख, शोक. संताप आदि का अनुभव नहीं होता है, क्योंकि संसार की माया सबों के लिए एक समान ही रहती है, अतः इन्सान के जीवन में दुःखादि तो कसोटी स्वरुप है, उसमें चिन्तित होकर दुःखों की वृद्धि करने की अपेक्षा, हँसते हुए दुःखों के समुद्र को पार करना ही निहायत अच्छा है / अंधकार भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा, तब नलराजाने वृक्ष के बड़े-बड़े पत्तों को एकत्र कर उसकी शय्या बनाई और बोले कि, प्रिये ! रात का समय होने से इस पथारी पर विश्राम करना चाहिये, मस्तिष्क पर आये हुए दुःखों को भूलने का उपाय निद्रा है / तव भयभीत (दमयंती) बोली स्वामिनाथ ! आज मेरा हृदय धड़क-धड़क हो रहा है / मन में अशान्ति है। हाथ पैर शिथिल हैं। शरीर मृत प्रायः जैसा है और निद्रा मानो, कह रही है, दमयंती ! “न जाने जानकी नाथ प्रभाते कि भविष्यति " राजाने कहा कृतकर्मों का भुगतान सर्वथा अनिवार्य होने से अनागत दुःखों की कल्पना करके वर्तमानकाल को बिगाड़ना बहुत ही बुरा है / जव तक उन कर्मों का उदयकाल आया नहीं है, तब तक उसका प्रतिकार करवाने वाली तथा आध्यात्मिक शक्ती को कमजोर करानेवाली चिंता करने का कुछ भी अर्थ नहीं है आश्वासित दमयंती लेट जाने की तैयारी करने लगी। कुछ दूरी पर गायों तथा भैंसों की आवाज कान में पड़ते ही दमयंती बोली कि, स्वामिनाथ ! यहां से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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