Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 38
________________ सर्पो की दौड़ धाम है, तीसरी तरफ जंगली श्व पदों से युक्त तो चौथी तरफ सिंह के द्वारा फाड़े हुए हाथिओं के हाड चाम से वीभत्स इसलिए मानो ! यमराज के क्रीड़ा करने के स्थान सदृश वन में नलराजा का रथ आ पहुँचा / पृथक् स्थान पर टोले में मिले हुए अनार्य जाति के वाघरी, कोली तथा भील आदि के लड़के हाथ में धनुष, तलवार, भाला गोफन के ताने हए तथा नल के रथ को घेरे में डालने का इरादा रखनेवालों को देखा और नलराज भी रथ से नीचे उतरकर हाथ में तलवार को नृत्य कराने लगे, और भील के ऊपर टूट पड़ने की तैयारी की. तब दयार्द्र बनी हुई. दमयंती भी रथ से उतरकर नलराज से बोली स्वामिनाथ ! पशुओं के माफिक जीवन यापन करनेवाले दयापात्र इनके ऊपर गुस्सा करना बेकार है, आप लीलामात्र में दक्षिणार्थ भरत को जीतनेवाले हैं. अतः इन अनाथों पर प्रत्याक्रमण करना शर्म लाने जैसा बनेगा। इतना कहकर सती दमयंती ने जोर से हुँकार किया. और डर के मारे वे अपनी अपनी दिशा में भागने लगे। जिसके जीवन में सत्यसदाचार-खानदानी तथा पवित्र सुरक्षित है. उनकी प्रत्येक चेष्टा में शूरवीरता चमके विना रहती नहीं है / भागते हुए भीलों के पीछे नलराजा भी गये. दमयंती भी गई। परंतु वे जब वापस अपने रथ की तरफ आये तब दूसरे मार्ग से आये हुए भीलों ने उनके रथ का अपहरण कर लिया था। भाग्यदेवता ही जब नाराज हो चुके हो तब इन्सान का पुरुषार्थ भी वन्ध्य बन जाता है। राजारानी की यही दशा था . क्योंकि निकचित कर्मों के उदय में भाग्य के आगे पुरुषार्थ की एक भी चलती नहीं है, फिर भी राजारानी को इसकी चिंता नहीं थी क्योंकि जब पूरा राज्य ही हाथ से चला गया. तो रथके लिए चिंतातुर होकर रोने वैठनेवाले नलराजा नहीं थे / मोहमिय्यात्व का जोरदार अंधकार जब जीवन में होता है. तब पांच पैसों के लिए भी इन्सान शोक संताप से व्याप्त होकर आर्तध्यान तथा रौद्र ध्यान तक भी पहुँच जाता है. परंत P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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