Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 37
________________ रिकों ने बड़े कुतुहल से यह देखकर बोले, दिग्गजों को भी परास्त करनेवाला यह नल कहाँ और मस्तक पर आई हुई यह विपत्ति कहाँ, मानो ! नियति ही सर्वाधिक बलवती है / एक दिन महाज्ञानी मुनि-- राज ने भी कहा था कि, एक भव में तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी मुनिराजको खीर का पारणा करानेवाला नलराजा दक्षिणार्थ भरत का राज्य करेगा, तथा इस स्तंभ को चलित कर फिर से स्थिर करेगा। मुनिराज की ये दोनों बातें सत्य सिद्ध हुई है, परंतु आज तो राज्यभ्रष्ट हुए नल निरवधि वन में जा रहे हैं, तो ये राजा कैसे बन पायेंगे ? अथवा नियतिवश कदाच पुनः राजगद्दी के वारसदार बन सकेंगे। नाग-! रिकों की ये बात सुनते हुए नलराजा ने वन में प्रवेश किया। एक स्थान पर स्थित होकर नलने दमयंती से पूछा / उद्देश्य के बिना प्रवृत्ति नहीं होती है, अतः तुम ही बतलाओ कि, अपन कौनसी दिशा तरफ जायें। तब कुछ थकान, कुछ भूख, कुछ तरस आदि की उपाधि को सामने देखकर दमयंती बोली, 'नाथ ! अपना रथ कुंडनपुर की तरफ ले जाना अच्छा रहेगा, जिससे मेरे पिताजी को आपका आतिथ्य करने का अवसर मिलेगा और समय भी आराम से पूर्ण होगा। नलने भी अपने सारथी को कुंडनपुर तरफ रथ को ले जाने का आदेश दिया। अनुभवियों का कथन है, इन्सान में यदि बात करने की तथा दूसरों को बनाने की चालाकी है तो वह बड़े से बड़े गंभीर इन्सान के पेट में रही बात को आसानी से बाहर ला सकता है, परंतु दुनिया भर के ज्योतिषी इकठे हो जाय तो भी कुदरत के पेट की बात को जानने में समर्थ नहीं होते हैं / नल तथा दमयंती ने एक भव में मुनिराज का जो अपमान किया था वह निकाचित पापकर्म अब उत्तरोत्तर फल देने को सन्मुख हुआ है / जभी तो नगर की सीमा को त्याग कर जहाँ एक तरफ वाघ, सिंह और चित्ते की आवाज है, तो दूसरी तरफ काले भयंकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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