________________ बोला, दमयंती ! इस भयंकर वन में तुम कहाँ से आई हो ! कौन हो ? और किन कारणों से वनवासिनी बनने पाई हो? तब सेठ के श्रध्यय शब्दों को सुनकर दमयंती की आंखें अश्रुपूर्ण बनी और नलराजा के जुगार से लेकर सारा वृत्तांत सुना दिया। सेठ ने कहा आज मेरा पुण्योदय है कि, मेरे श्रध्येय, पूज्य नलराजा की धर्मपत्नी को आंखो से देख रहा हूँ अतः तुम भी मेरे लिए पूज्य हो / परिचय बिना भी चोरों स मेरा तथा मेरे साथियों का रक्षण करके आपने उपकार द्वारा मुझे खरीद लिया है। अतः मेरे आवास में पधारे जिससे आपकी सेवा भक्ति द्वारा मैं यत्किचित् अंशो में ऋग मुक्त बन पाऊं ! इस प्रकार वह सेठ दमयंती को अपने आवास पर ले आया और वनदेवी के माफिक उनकी सेवा में लग गया। - कुछ दिनों के बाद वर्षा ऋतु का प्रारम्भ हुआ। नाटक के प्रारंभ में जिस प्रकार नांदी होती है, उसी प्रकार मेघो की गर्जना तथा विजली की चमकपूर्वक मेघराज का नाटक भी जोरदार रहा / नदी, नाले भर गये / मेंढको का संगीत चालू हुआ / वराह तथा उनकी मादाओ को मजा देनेवाला कीचड़ तथा छोटे-छोटे गढे पानी से भर गये। मुसाफिरों के लिए गमनागमन कष्टप्रद बन गया। इस प्रकार तीन रात तथा दिन तक विश्राम लिए बिना ही वर्षा का तांडव जोरदार रहा। जब वर्षा का जोर कम पड़ा, तब महासती दमयंती ने सार्थवाह का आवास छोडकर एकाकिनी बनी और वन में आगे की तरफ चलने लगी। 1. जिस दिन से नलराजा का वियोग हुआ है, तब से उपवास आदि तपश्चर्या का प्रारंभ किया हुआ होने से धीमे-धीमे चलती हुई बहुत आगे निकल गई। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust