________________ लकडी केआधार पर खड़ा रहा और छत्ते (अंब्रेला) को मस्तक पर धारण किया। कर्मसंयोग था, उसी समय घुटण तक के कीचड में ध्यानस्थ एक मुनिराज को देखा और भाव से दयार्द्र बना हुआ वह रवारी मुनिराज के नास जाकर अपना छत्ता मुनि के मस्तक पर धारण कर खड़ा रहा। काफी समय होने पर भी मन में कुछ भी कंटाला लाये विना उसने मुनिराज को उपसर्ग से बचाया / जो परमधर्म है / बडी देर के बाद बारिश स्थगित हुई तब धन्य बोला कि, गुरुदेव ! चारों तरफ कीचड़ ज्यादा है आपको चलना कठिन होगा, अत: मेरे भैंसे पर आप बैठ जाईए जिससे आपको आसानी से निरुपद्रव स्थान पर पहुँचा दूंगा। मुनिजीने कहा कि, भाग्यवान् ! इस भैंसे में जीव है, जो अपने समान ही है, इसलिए अपने मुख के खातिर किसी भी जीव को पीड़ा देना अच्छा नहीं है। अपन धीमे धीमे आगे चल पडेंगे और धन्य ने बडी आसानी से मुनिजी को अच्छे स्थान पर लाया और बडी ही श्रद्धा से उन मुनि के हाथपैर तथा नीठ दबाई, फिर उसने कहा कि प्रभो ! आप जरा विश्रांति करें में घर पर जाता हूँ और भैंसों का दूध शीघ्र लाता हूँ। तब तक आप विहार न करें / धन्य गया और मटका भरकर ताजा दूध लाया मुनि को पारणा करवाने का अभूतपूर्व लाभ लिया और उसका मनमयूर त्य करने को लगा क्योंकि इतना सुंदर अवसर कम भाग्यवालों को या कच्चे भाग्यवालों को प्राप्त नहीं होता है / यह रबारी जैन धर्म के योग्य ई ऐसा जानकर मुनिजीने बारह व्रतों का उपदेश दिया और धन्य ने नतमस्तक होकर व्रत स्वीकारे तथा जीवनके आखिरी श्वास तक उसका ालन किया। धर्म के प्रभाव से वह समझने लगा था कि, 'ब्रेक बिना की सायकल, बस, मोटर, ट्रक, ट्रेन कभी भी बडा भारी खतरा उत्पन्न कर सकती है, उसीप्रकार इन्सान चाहे श्रीमंत या रंक, गोरा या काला, =डित या अपंडित, बाल या वृद्ध, स्त्री या पुरुष आदि उनके जीवन में =तों की मर्यादा न रही तो वह इन्सान कभी भी हिंसा, झूठ, दुराचार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust