Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 24
________________ तत्त्वज्ञान में तैक्ष्ण्य, सामायिक पूजा आदि सदनुष्ठानों में कौशल्य प्राप्त करने में देर न लगी। पठन-पाठन में दमयंती की तीव्रता देखकर भीम राजा बड़े प्रसन्न हुए। एक दिन शासनमाता निवृत्तिदेवी दमयंती के पास आई और सुवर्णमयी अरिहंत परमात्मा की मूर्ति को अर्पण करती हुई शासनमाता ने कहा कि, हे दमयंती ! भविष्य में होनेवाले सोलहवें शान्तिनाथ परमात्मा की यह प्रतिमा है, अत: रोज पूजा करना यह कहकर देवी अन्तर्धान हुई / मूर्ति की देखकर राजकन्या खुश हुई और श्रद्धापूर्वक अपने महल में अच्छे स्थान पर स्थापित की। इसप्रकार सखिओं के साथ खेलती कूदती वह दमयंती 18 वर्ष की हुई / राजघराने में जन्म लेने पर भी कन्या सत्य तथा सदाचार पूर्ण थी / खेलने कूदने में भी असभ्य मश्करी तथा झूठ प्रपंच से दूर थी। जबान में मिठास, हृदय में स्वच्छता, दिमाग में शीतलता, हाथों में उदारता आदि के गुण होने से राजकन्या सर्वत्र विश्वसनीय तथा आदरणीय बनी। ... ... दमयंती का स्वयंवर / दमयती का स्वयंवर , _____ उम्र लायक होने से भीमराजा को उसके विवाह की चिंता हुई / अपने दूत भेजकर कितने राजा तथा राजकुंवरों की तस्वीर मँगवाई, परंतु कन्या के योग्य एक भी कुंवर पसन्द न आनेसे स्वयंवर के लिए तिथि निर्णय कर सर्वत्र निमंत्रण भेज दिये गये / यथासमय स्थानस्थान के राजा तथा कुंवर आये / निषधराज भी अपने दोनो पुत्रनल तथा कुबर को लेकर पधारे / भीमराजा ने सभी का स्वागत किया। स्वयंवर के लिए भव्य मंच का निर्माण करवाया, जिसको सुशोभित बनाने में एक भी कमी राजाने रहने नहीं दी। समय होने पर अपनी योग्यतानुसार सब आये और सिंहासन पर आसीन हुए / उसी समय 16 प्रकार के शृंगार से देवकन्या, सी बनी हुई दमयंती हाथ में वरमाला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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