Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 25
________________ में वरमाला न डालो इस काम हताश बनकर क्षत्रियधर्म से पतित बने हुए तुम जो अवाच्य भाषा बोल रहे हो वह तुम्हारे खानदान के लक्षण नहीं है / स्वयंवर में तो कन्या चाहे किसी का वरण कर सकती है, उसमें दखलगिरि करना अत्यंत निदनीय कर्म है / दमयंती ने मेरे गले में वरमाला डाली है, अतः वह तुम्हारे लिए परस्त्री बन गई है, और परस्त्री तरफ नजर करना, हर हालत में भी अच्छा कार्य नहीं है। तथापि क्षत्रिय धर्म की मर्यादा का उल्लंघन कर यदि तुमने कुछ भी किया तो भी तुम्हे निराश होने के अतिरिक्त दूसरा कुछ भी हाथ में आनेवाला नही है / आपको यदि तलवार लेना आता है, तो हमने हाथ में चूड़ियाँ पहनी नहीं है / इतना कहकर नलराजने भी अपने म्यानसे यमराज की जीभ के समान तलवार निकाली और दोनों राजकुमार आपस में रण मैदान पर उतर गये / नलराजा का धर्म युद्ध है, तब कृष्णराज का अधर्म युद्ध है। अरिहंत परमात्माओं का धर्म इसीलिए उत्कृष्टतम तथा वंदनीय है कि, 'सीमाधरस्स वंदे आर्हत धर्म यदि जीवन में परिणत हो गया होता है, तो जीवात्मा अपने आप ही इन्द्रियों के भोगविलास से तथा मन की शैतानीसे दूर हो जाता है / यद्यपि गृहस्थाश्रमीको शादी करना निषेध नहीं है, तो भी जो कन्या अपने को चाहती नहीं है, बोलना तथा देखना भी पसंद करती नहीं है, तो फिर उसको मोहित करने का कार्य करना सर्वथा अधर्म कार्य है, इससे मानसिक जीवन उत्तेजित बनता है, इन्द्रियों में तूफान बढ़ता है, बुद्धि में गंदापन आता है, ज्ञान विज्ञान परद्रोही बनता है, चालाकी चतुराई अपने को ही खतम करनेवाली होती है / वडिलों की शरम तथा शरीर के रुपरंग तेजओज पर कालिमा लगती है उपरोक्त विचार किये बिना ही दोनों राजकुमारों का युद्ध एक दूसरे को मरने और मारने की मर्यादा में आ गया था। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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