Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 26
________________ को नल ने माफ कर दिया। क्योंकि अपराधी जब माफी मांग रहा है, तब उसको माफ करने वाला ही सज्जन-महाजन तथा ज्ञानगंभीर है। तत्पश्चात् भीमराजाने अपनी पुत्री दमयंती का नलराज के साथ बड़ी धूमधाम से हस्तमिलाप किया, तथा हस्तमोचन के साथ हाथी, घोड़े, | रथ, हीरे, मोती के आभूषण आदि भी खूब दिये / गोत्र की वृद्ध स्त्रियों / ने धवल मंगल के गीत गाये और छेड़ाछेड़ी बांधी हुई दम्पति सबसे पहिले राजा के घर में रहे हुए अरिहंत परमात्मा के चैत्य (मंदिर) में गये तथा भावपूर्वक देवाधिदेव भगॅवत को वन्दन किया। लग्नांतर भीम राजा ने निषधराजा तथा कुबर कुमार का भी सत्कार किया और सानन्द विदाय दी। राजा ने अपनी पुत्री को शिक्षा देते हुए कहा कि, 'पुत्री !' सुख तथा दुख में भी अपने पति का पड़छाया मत छोड़ना / गांव की नदी तक भीमराजा भी पहुँचाने के लिए आये और हर्षपूर्वक सबों का मुंह मीठा करवाकर विसर्जित किया, रास्ते में जाते हुए सूर्यास्त होने के बाद भयावह अंधकार छा गया, जिससे सैन्य को आगे बढने में अन्तराय पड़ा, तब नल ने दमयंती को प्यार से कहा कि, प्रिये ! स्वदेश जाते समय अंधकारने अपना रास्ता स्थगित कर दिया है। अतः तुम्हारे ललाट में रहे हुए तिलक का प्रयोग कर सैन्य को आगे बढने में सहायता की जाय / अपने पति की आज्ञानुसार दमयंती ने अपने ललाट पर हाथ फिराया और दोपहर के सूर्य के प्रकाश तुल्य प्रकाश ने अंधकार को भगा दिया। अपनी पुत्रवधु की इसप्रकार की अद्वितीय चमत्कारिता से निषधराज तथा सैन्य आदि खूब प्रभावित बने / कारण कि, प्रकाश तथा हवा के विना जीवित मानव भी मरे हुए समान है। सैन्य आगे बढा / जिस मार्ग से सैन्य जा रहा था, उसी रास्ते पर भ्रमरों से तथा मदोन्मत हाथी से उपद्रवित कुछ दूरी पर ध्यान मुद्रा में स्थित एक मुनिराजपर अचानकही नलराजकी दृष्टि पड़ी और पिता निषधराजको कहा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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