________________ तथा कुबर जो नल से छोटा पुत्र था उसे युवराज पद से अलंकृत कर स्वयं ने मुनिराज के चरणों में पंचमहाव्रत धर्म का स्वीकार किया और अपनी पिछली अवस्था को सफल बनाई। राज्यधुरा को को संभाले हुये नलराजा ने अपने संतान के समान ही प्रजा का पालन किया, जिससे राजा तथा प्रजा में दुर्गुणों का प्रवेश होने न पावे / प्रजा के सुखदुःख को न समझने वाला राजा, कभी भी यशस्वी तो न बनेगा परंतु सत्ता संभालने के पहिले जो कुछ भी उसके सद्गुण थे वे भी दुर्गुणों में परिवर्तित हुये बिना रहने नही पाते, इसीलिए " राजेश्वरी सो नरकेश्वरी" कहा गया है / नलराजा को इस बात का पूरा ध्यान था कि, बडे आदमिओं में जब सत्ता का मोह बढ जाता है तब उनका आध्यात्मिक जीवन, यश तथा कीर्ति भी नष्ट हो जाते है / इसीलिये बुद्धि तथा पराक्रम से युक्त नलराज को जीतने के लिए दूसरा कोई भी राजा समर्थ नही था / / ऐसा होने पर भी एक दिन अपने सामंतों से पूछा कि, मेरी राज्य संचालन की व्यवस्था कैसी है ? प्रजा दुःखी तो नही है ? किसी भी प्रकारके दुसनों से मेरी प्रजा मुक्त है ! या युक्त ? तथा राज्य की सीमा जो मेरे पिता के समय मे थी उसमें कुछ वृद्धि हुई है / या नहीं ? तब बुद्धिवैभव सम्पन्न मंत्रियों ने कहा, / राजा जी ! -- आपके पिता के पास तीसरा भाग कम अर्ध भरत था, जव आपके पास दक्षिणार्थ भरत पूर्ण है, यही कारण है कि आप अपने पितासे भी अधिक है, परंतु यहाँ से दो सौ योजन दूर तक्षशिला नाम की नगरी है, वहाँ का कदंब. नाम का राजा आज भी आपकी आज्ञा माननेसे इन्कार करता है / अतः भरतार्थ को जीतनेसे प्राप्त हुए आपके यशरूपी. चंद्रमें वह दुविनीत राजा कालिमा के तुल्य बना हुआ है / वेदरकार रहने पर जैसे व्याधि बढ़ जाती है, उसी प्रकार वह राजा आपके प्रमादस ही खूब आगे बढ जा चुका है / इसलिए उसको जीतना आपके सैन्य के लिए कष्टसाध्य है, तथापि आप यदि अपना मन रोषपूर्ण कर ले तो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust 25