________________ परस्त्री या वेश्यागमन, शराबपान या भांग गांजा का सेवन आदि भयंकर से भयंकर पापाचरण कर सकेगा अतः व्रतमय जीवन ही मानवता है, खानदानी है, तथा जैनत्वयुक्त जैनधर्म को प्राप्त करने का मौलिक कारण है। खुश होता हुआ धन्य अपने घर गया और धर्मपत्नी घूसरी से सब जिक्र किया और उसने भी श्रद्धापूर्वक व्रत स्वीकार किय और आजीवन पाले। पापमार्ग के संपूर्ण द्वारों को अवरुद्ध करने वाले मुनिराजों के सत्पात्र में दिये दान के प्रभाव से उपाजित पुण्यकर्मो को भोगने के लिए हैमवत क्षेत्र में वह दंपति युगलिक बने, जहाँ पर इस प्रकार के कल्पवृक्ष उनको भोजन, पान, वस्त्र, औषध आभूषणआदि सदैव देने वाले होते हैं , अर्थात् युगलिकों के मन में जो भी अभिलाषा होती है, तब वे कल्पवृक्ष के नीचे आते हैं और इच्छित पदार्थ उनको प्राप्त होता है / अतः किसी भी वस्तु का परिग्रह रखने की आवश्यकता न होने से जीवन में राग, द्वेष क्रोधकषाय आदि की संभावना नही होती है / क्योंकि परिग्रह स्वयं पाप है। मनुष्य क्षेत्र के इन्सानों का पुण्य कमजोर होने के नाते अभिलाषित पदार्थ उनको व्यापार-रोजगार के द्वारा ही प्राप्त करना होता है. इसीलिए उनको परिग्रह बढाये बिना दूसरा मार्ग नहीं है और इसी के पाप से इन्सान को राग, द्वेष मोह, माया, स्वार्थ, तथा दूसरों से अधिक खाने पीने के पदार्थ वस्त्र, आभूषण व रोकड रकम एकत्र करने के भाव होते हैं, बढते हैं और दुष्कर्मों की उपार्जना कर दुर्गति में जानेकी योग्यता प्राप्त करते हैं। परंतु युगलिकोंको किसी भी पदार्थ को संग्रहित करने का न होनेसे राग द्वेषादि होने की संभावना नहीं होती है, अतः कषायाभाव में देवगति सुलभ बनती है / वह दंपती भी युगलिकत्व को त्याग कर देवयोनि में देव-देवी बने / 14 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust -