Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 12
________________ तुम दोनों के वैभव-रुप-लावण्य का में प्रत्यक्ष साक्षी हूँ। इसीलिए मेरी सलाह है कि, स्वयंवर के समय तुम्हारी वरमाला वसुदेव के गले में पड़े। कनकवती खुश हुई, हृदय आनन्द से भर गया। आंखों में नई रोशनी आई. रोमराजी विकसित हुई। हंस ने कहा कि, वसुदेव भी तुम्हारे स्वयंबर में आयेंगे जो ताराओं के बीच चन्द्रमा मै समान पहचान में आने में तुम्हें समय नहीं लगेगा। अब मुझे छोड़ दो और पक्षी को पकड़ने के अपवाद से मुक्त बनो / राजपुत्री ने हंस को छोड़ दिया, तब उसने एक फोटू राजकन्या की गोद में फेका, आश्चर्यचकित बनी हुई कन्याने कहा कि, "वसुदेव को मेरा संदेश देना कि, तुम्हारे बिना कनकवती का जीवन सुरक्षित रहना संभव नहीं है / अतः स्वयंवर में जरुर पधारें।" जाते हुए भी विद्याधर ने कहा कि, 'हे कन्या! जो तुम्हारे महल में दूसरे का दूत बनकर आयेगा उसी को तुम वसुदेव' जानना और विद्याधर जैसे आया था, वैसे ही गया / आँख बंद कर कनकवतीने शासनदेव से प्रार्थना में कहा कि, विद्याधर का मार्ग अविघ्न बने और मेरा कार्य निर्विघ्न सफल बने / तदन्तर वसुदेव की तस्वीर के सामने तन्मय बन गई। सुखशथ्या पर सोये हुए वसुदेव राजा को असभ्य प्रकार से जगाना ठीक न समझकर विद्याधर ने पैर दबाना चालू किया और ज्योंही दूसरे का स्पर्श हुआ वसुदेव जागृत होकर विचारने लगे कि, रात के समय में मेरे महल पर आनेवाला कौन हो सकता है ? पगचंपी से मालूम होता है कि यह मेरा शत्रु नहीं है फिर भी सावधानी रखना गलत नहीं है। रतक्लांत सोई हुई धर्मपत्नी की नींद में विघ्न न पड़े इस प्रकार वसुदेव ने पलंग छोड़ा और विद्याधर से वार्तालाप किया, अन्त में इतना ही कहा कि, आज कृष्ण पक्षीया दशमी है और आनेवाली शुक्लपंचमी को स्वयंबर है, अतः आपका पधारना नितांत आवश्यक है, अन्यथा कनकवती का जीवित रहना असंभव है। वसुदेवने कहा कि, तुम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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