Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 11
________________ राजहंस का आगमन एक दिन अपनी सखियों के बीच आनंद- प्रमोद करती हुई राजकन्या की गोद में एक राजहंस आकर बैठ गया / सवको आश्चर्य हुआ। राजकन्याने बड़े प्रेम से उस पक्षी पर हाथ फिराया / हंस बहुत ही सुन्दर, शोभनीय तथा देवताई गुणों से युक्त होने के कारण राजकन्या को उसपर मोहित होना स्वाभाविक था। जूदे-जूदे आभूषणों से सज्जित उस राजहंस को देखकर कन्या ने विचारा कि, यह हंस किसी बड़े पुण्यशाली के विनोद का पात्र है अन्यथा जिस पशु-पक्षी का कोई स्वामी नहीं होता वह आभूषण से युक्त भी नहीं होता है। यह चाहे किसी राजा महाराजा का हो तथापि मेरा मन भी चाहता है कि, यह हंस मेरे भी विनोद का कारण बने / ऐसा सोचकर अपनी दासी को काष्ठपिंजर लाने का आदेश दिया जिससे राजहंस को उसमें रख दिया जाय। योंकि पक्षी प्रायः एक स्थान पर स्थिर नहीं रहने पाता है। दासी पिंजर लाने गई, तब मनुष्यभाषा में वह हंस बोला, राजपुत्री ! तुम विवेकवती हो धर्म-कर्म को जानती हो इसलिए पिंजरे में कैद करने का प्रयत्न मत करो / मैं तुम्हें तुम्हारे हित की कुछ बात सुनाने आया हूँ / पक्षी को मनुष्यभाषा में बोलते देखकर विस्मित हुई राजकन्याने कहा- हंस ! तुम्हारा स्वागत हो, तुम मेरे लिये अतिथि हो / अब आप जो बात मुझसे करना चाहते हो उसको कहिए क्योंकि अधूरी बात पूर्ण करनी वह शक्कर से भी ज्यादा मीठी होती है। हंसने कहा कि, इस समय पूरे भारत देश में वसुदेव के समान दूसरा कोई भी रुपवान बलवान, तेजस्वी युवक नहीं है, और तुम भी रुपसंपत्ति से पूर्ण हो अतः तुम दोनों का मिलन ईश्वर का आशीर्वाद ही माना जायेगा। क्योंकि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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