Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 10
________________ // अहम् // शास्त्र विशारद, जैनाचार्य श्री विजय धर्म सूरि गुरु देवाय नमः : कनकवती का जन्म : इसी भरत क्षेत्र में विद्याधरों की नगरी से स्पर्धा करनेवाला पेढालपुर नाम का नगर था। जिसकी शोभा, ऐश्वर्य तथा हाट हवेलीओं की बांधनी नयनरम्य थी। देवों की अमरावती भी यद्यपि स्मरणीय थी तथापि जैनधर्म की आराधना वहां पर न होने से उसकी अपेक्षा पेढालपुर नगर देवों के लिए भी सराहनीय था। यहां की जनता अहिंसा-संयम तथा तपोधर्म की अनुरागिणी थी / उसमें ऋद्धि-समृद्धियश-कीर्ति तथा लक्ष्मीदेवी और सरस्वती देवी का भी चिरस्थायी वास था। उस नगरीमें सत्य-सदाचारादि गणीपेत हरिश्चंद्र नामका राजा राज्य करता था, जो इन्द्रिय जय, न्यायनीति आदि गुणों से युक्त होने पर भी पराक्रमशाली था / लक्ष्मी की तरह यश तथा कीर्ति का भी वह स्वामी था। उस राजा की शील-लज्जा-प्रेम-दक्षता-उदारता तथा विनय विवेक संपन्न लक्ष्मीदेवी नाम की रानी थी, जो जंगमवल्ली के समान 64 कलाओं से पल्लवित, लज्जा आदि गुणों से पुष्पित तथा पतिव्रता धर्म से फलित थी। एक समय शुभमुहुर्त में उसने एक पुत्री को जन्म दिया। र प्रथमस्वर्ग के इन्द्रमहाराज के लोकपाल कुबेरदेव जो उत्तर दिशा पर प्रमुत्व रखते थे, वे जन्म लेनेवाली इस लड़की के पूर्वभवीय पति होने के नाते स्नेहवश हरिश्चंद्र राजा के महल में हीरे, मोती, सुवर्ण-रजत आदि की वर्षा की। अतः राजा रानी को पुत्री का जन्म आनंदमय बन गया / बारहवें दिन उसका नाम कनकवती रखा गया, दूज के चंद्र के समान बड़ी हुई और शस्त्र तथा शास्त्र विद्या उपरांत तर्क, कर्मग्रंथव्याकरण कोषादि के ज्ञान सम्पादन में वह प्रथम अग्रेसर रही। रुप लावण्य भी अद्वितीय था। जब वह यौवनवती हुई तब उसके लिए वर की खोज में अपने दूत चारों तरफ भेजकर राजकुंवरों के फोटो मंगवाये गये / परीक्षण करने के पश्चात एक भी राजकुंवर पसंद नहीं आया था। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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