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यमराज विनम्रेन रुजोनाशन भो विभो ।
तनुचारुरुचामीश शमेवारक्ष माक्षर ॥ ( प्रतिलोम क्रम)
ये सब केवल शब्द हैं, ऐसा नहीं है। इनमें बहुत गहरे भाव छिपे हैं। एक-एक श्लोक के कई श्लोक के कई अर्थ निकलते हैं। शब्द संयोजन की ऐसी कला बहुत मुश्किल है, लेकिन समन्तभद्र सूरि जी निस्संदेह उच्च कोटि के विद्वान थे। इसके अलावा भी जीवसिद्धि, तत्त्वानुशासन, प्राकृतव्याख्यान, प्रमाणपदार्थ, कर्मप्राभृत टीका आदि ग्रंथ इनकी रचनाएं हैं।
कालधर्म :
विहार करते-करते कोरंटा तीर्थ में उपाध्याय देवचन्द्र को शुद्ध संयम धर्म में स्थिर कर अपने पद पर स्थापित किया तथा शत्रुंजय तीर्थ पर अनशन स्वीकार कर काल धर्म को प्राप्त हुए। भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग 653 वर्षों बाद वे कालधर्म को प्राप्त हुए।
महावीर पाट परम्परा
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