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2. आदिनाथ जिनालय, मालपुरा में प्राप्त सुविधिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार
ज्येष्ठ शुदि 5 शुक्रवार वि.सं. 1672 में प्रतिष्ठित)। कुंथुनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी में प्राप्त महावीर स्वामी, पार्श्वनाथ जी, सुमतिनाथ जी की पाषाण प्रतिमा (लेखानुसार माघ वदि 1 गुरुवाद वि.सं. 1674 में प्रतिष्ठित) रोशन मोहल्ला, आगरा के जिनमंदिर में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी जी की प्रतिमा (लेख अनुसार माघ वदि 1, गुरुवाद वि.सं. 1674 में प्रतिष्ठित)। चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ में प्राप्त चंद्रप्रभ स्वामी की प्रतिमा (लेख अनुसार ज्येष्ठ सुदि 13 वि.सं. 1677 में प्रतिष्ठित)। चौमुख जी का मंदिर, जालोर में प्राप्त आदिनाथ (ऋषभदेव) जी की प्रतिमा (लेख अनुसार प्रथम चैत्र वदि 5 गुरुवार वि.सं. 1681 में प्रतिष्ठित)। गोड़ी, पार्श्वनाथ जिनालय, कोलर में प्राप्त सुमतिनाथ जी प्रतिमा (लेख अनुसार आषाढ़ .
वदि 4 गुरुवार वि.सं. 1683 में प्रतिष्ठित)। 8. पंचायती जैन मंदिर, ग्वालियर में प्राप्त संभवनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेख अनुसार
वैशाख, सुदि 15 वि.सं. 1685 में प्रतिष्ठित)। कालधर्म :
विजयदेव सूरि जी 24 वर्ष की अवस्था में गच्छ नायक बने। उनकी कुल आयु 79 वर्ष के लगभग थी। शासन की प्रभावना करते-करते वे दीव (ऊना) पधारे जहाँ भक्ति भाव से श्रावकों ने स्वागत किया। अपने दादागुरु श्री विजय हीर सूरि जी की समाधि के भावपूर्वक दर्शन कर उन्हीं के सानिध्य में अपने अंत क्षण बिताए। आषाढ़ सुदि 11 वि.सं. 1713 (सन् 1656) में देव-गुरु-धर्म की त्रिवेणी धारा को चित्त में धारण करते उनका वहीं कालधर्म हुआ। उस समय आकाश में दिव्य तेज हुआ। हीर विजय सूरि जी के समाधिस्थल के पास ही इनका समाधि स्थल बनाया गया
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महावीर पाट परम्परा
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