Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 280
________________ द्वारा आत्मा को निर्मल बनाया। जब संवत् 1774 में जब कर्पूर विजय जी ने ऐतिहासिक 700 जिनबिंबों की प्रतिष्ठा कराई, उस समय जिन विजय जी का दीक्षा पर्याय 4 वर्ष का था एवं वे भी ऐसे ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने थे। संवत् 1774 की विजयादशमी, शनिवार के दिन मुनि सुमति विजय जी की प्रेरणा से जिन विजय जी ने अपने दादागुरु पंन्यास श्री कर्पूर विजय जी का जीवन चरित्र स्वरूप रास रचा। संवत् 1775 में कर्पूर विजय का देवलोकगमन हुआ। तत्पश्चात् क्षमा विजय जी पट्टधर हुए। कुछ वर्षों बाद अपना अंतिम समय जानकर पंन्यास क्षमा विजय जी ने मुनि जिन विजय जी को सुयोग्य जानकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। शाश्वत गिरिराज सिद्धाचल (पालीताणा) एवं शंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा करने के बाद वे पाटण आए जहाँ से उनकी निश्रा में आबू तक का छ:री पालित संघ निकाला गया। तत्पश्चात् सादड़ी, राणकपुर, घाणेराव विचरते हुए नाडोल में चातुर्मास किया। बाद में नाडलाई, वरकाणा पार्श्वनाथ होते हुए चातुर्मासार्थ पाटण पधारे जहाँ से उनकी निश्रा में शंखेश्वर पार्श्वनाथ तक का संघ निकाला गया। इस प्रकार भावनगर, गिरनार, बडौदा, गंधार, जंबूसर, सूरत, अहमदाबाद आदि विस्तृत क्षेत्र में विचरण किया। अपने 29 वर्ष के छोटे से दीक्षा पर्याय में उन्होंने आचरण एवं विचरण से शासन की महती प्रभावना की। ___ इनके अनेक शिष्य थे। जैसे- उत्तम विजय जी, अमृत विजय जी, खीमा विजय जी इत्यादि। उस समय में इस संवेगी परंपरा के चारित्र से प्रभावित होकर किन्हीं पं. सुरचंद्रगणि जी के शिष्य पं. हेमचन्द्र गणि जी ने क्रियोद्धार कर संवेगीमार्ग स्वीकार किया। साहित्य रचना : पंन्यास जिन विजय जी एक कुशल व सरस रचनाकार थे। उनकी कुछ कृतियां इस प्रकार हैं- कर्पूर विजय जी रास - पाटण (वि.सं. 1774) - क्षमा विजय जी रास - वड़नगर (वि.सं. 1786) - जिनस्तवन चौबीसी - अहमदाबाद (वि.सं. 1786) - जिनस्तवन बावीसी - अहमदाबाद (वि.सं. 1786) - ज्ञानपंचमी स्तवन - पाटण (वि.सं. 1783) महावीर पाट परम्परा 246

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