Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

Previous | Next

Page 294
________________ कुछ समय पश्चात् कीर्ति विजय जी की निश्रा में अहमदाबाद से राधनपुर का संघ निकला। साधुता की भावना में दृढ़ता को प्राप्त कर चुका मोतीचंद माता-पिता की आज्ञा लेकर राधनपुर आया एवं विद्याभ्यास करने लगा। कीर्ति विजय जी के साथ विहार करते-करते तारंगा, आबू, सिरोही, नांदिया, राणकपुर, सादड़ी, घाणेराव आदि तीर्थो की स्पर्शना पर दर्शन और ज्ञान को दृढ़ कर मोतीचंद पाली आया। पाली के श्रावक-श्राविकाओं ने सुना कि मोतीचंद भाई दीक्षा लेने वाला है। संघ ने गुरु महाराज को बार-बार विनती की कि दीक्षा प्रदान का ऐसा अनमोल लाभ पाली संघ को प्रदान कीजिए। माता-पिता की भी आज्ञा ले ली गई। अंततः 25 वर्ष की आयु में मोतीचंद ने वि.सं. 1877 (ईस्वी 1820) में दीक्षा स्वीकार की। पंन्यास कीर्ति विजय जी महाराज ने उसका नाम - मुनि मणि विजय रखा एवं पंन्यास श्री कस्तूर विजय जी का शिष्य घोषित किया। शासन प्रभावना : मुनि मणिविजय जी ने साधु प्रतिक्रमण, पडिलेहण आदि क्रियाओं का विधिपूर्वक अभ्यास किया एवं दशवकालिक - आचारांग आदि का तलस्पर्शी अध्ययन किया। कस्तूर विजय जी और मणि विजय जी, दोनों ज्ञान-ध्यान एवं तपस्या में लीन रहते। पंन्यास कीर्ति विजय जी की आज्ञा से गुरु-चेले ने साथ विहार किया एवं वि.सं. 1877 का चातुर्मास मेड़ता में किया। _ वि.सं. 1878 (ईस्वी सन् 1821) का चातुर्मास राधनपुर एवं अगले तीन चातुर्मास अहमदाबाद में किए। अहमदाबाद के प्रथम चौमासे में मणि विजय जी एकासना ठाम चउविहार, उपवास आदि तपस्याएं करने लगे एवं एक साथ 16 उपवास किए। वि.सं. 1880 में एक महीने के एवं वि.सं. 1887 में 32 उपवास किए। वि.सं. 1890 का चातुर्मास उन्होंने बनारस (वाराणसी) किया एवं तत्पश्चात् सम्मेत शिखर महातीर्थ की यात्रा की। ज्येष्ठ सुदि 13 वि.सं. 1923 के दिन पंन्यास दयाविमल जी गणि ने अहमदाबाद में संघ साक्षी में मणि विजय जी को पंन्यास पदवी प्रदान की। मणि विजय जी ने सत्य प्ररूपणा कर के जिनशासन की महती प्रभावना की। वि.सं. 1912 में पंजाब से आए हुए ऋषि बूटेराय जी, ऋषि मूलचंद जी, ऋषि वृद्धिचंद जी, तीनों स्थानकवासी साधुओं का सम्यग्दर्शन सुदृढ़ कर श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में संवेगी दीक्षा प्रदान कर जिनशासन के सुसाधुओं में श्लाघनीय अभिवृद्धि की। उनके नाम क्रमशः बुद्धिविजय जी, मुक्ति महावीर पाट परम्परा 260

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330