Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 325
________________ वि.सं. 2047 में विजय वल्लभ स्मारक, दिल्ली में पंन्यास पदवी से अलंकृत किया। पालीताणा की भूमि पर वैशाख सुदी 2, वि.सं. 2050 के पावन दिवस पर चतुर्विध संघ की साक्षी से सुविशाल जनमेदिनी के मध्य आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी ने पंन्यास नित्यानंद विजय जी को आचार्य पद के महिमावंत पद से विभूषित किया एवं पंजाब आदि उत्तर भारत में धर्मरक्षा - धर्मप्रचार का विशेष दायित्व दिया। विनय, विवेक और विश्वास की विशिष्ट त्रिपदी आचार्यश्री की कार्यशैली का अभिन्न अंग है। वडील गुरुदेवों के प्रति विनय उनकी लघुता का प्रतिबिम्ब है। आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि जी, जनकचंद्र सूरि जी, वसंत सूरि जी, जयानंद सूरि जी आदि को उन्होंने सदा पितृतुल्य माना। उनके सदाशीर्वाद से भगवान् महावीर की परम्परा के संरक्षण एवं संवर्धन में गुरुतर दायित्व निभा रहे हैं। आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि जी म. के सन् 2002 में देवलोकगमन से संघ में व्याप्त शून्यता की परिपूर्ति हेतु समुदाय - वडिल आचार्य जनकचंद्र सूरीश्वर जी म. के शुभाशीर्वाद, अनेकों श्रमण- श्रमणियों के आग्रह एवं विविध संघों की भावभीनी विनती को स्वीकार कर पौष सुदी 6 वि. सं. 2061 के शुभ दिन विजय वल्लभ स्मारक, दिल्ली की धन्य धरा पर आचार्य इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी के क्रमिक पट्टधर के रूप में उन्हें विभूषित किया गया तथा सामाना (पंजाब) में उनकी गच्छाधिपति पदवी हुई। आचार्य विजय नित्यानंद सूरि जी म. ने सम्मेतशिखर, अयोध्या, रत्नपुरी, ऋजुबालुका, हस्तिनापुर, श्रावस्ती, क्षत्रियकुण्ड आदि अनेक कल्याणक भूमियों के उद्धार करवाए हैं। इसी कारण अयोध्या तीर्थ में अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव में संघ द्वारा 'कल्याणक तीर्थोद्धारक' का बिरुद प्रदान किया गया। पीलीबंगा हनुमानगढ़, सूरतगढ़, नोहर भादरा आदि क्षेत्रों में वर्षों से बंद पड़े जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार का उन्होंने पुरुषार्थ किया। उनकी पावन निश्रा में अनेकों शिखरबद्ध जिनालयों की अंजनश्लाका प्रतिष्ठा, उपधान तप, छ:री षालित यात्रासंघ आयोजित हुए हैं। गुरु भावना अनुरूप अनेकों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, गौशाला, आराधना भवन आदि के निर्माण की पावन प्रेरणा देकर समाजकल्याण एवं जनसेवा में मानवधर्म का आदर्श स्थापित किया। शांति, एकता एवं संगठन के अग्रदूत के रूप में भी आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी की प्रसिद्धि है। जालना (महाराष्ट्र) में दो गुटों के विवाद को आचार्यश्री जी ने मार्मिक प्रवचन के माध्यम से सुलझाया। इसी प्रकार अनेकों स्थानों पर उन्होंने द्वेष के दावानल को शांत महावीर पाट परम्परा 291

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