Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 329
________________ चौबीसवें तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी जी ने हम पर असीम करुणा की वर्षा करते हुए सम्यक् धर्म की प्ररूपणा की । उनके द्वारा प्रवाहित श्रुत परंपरा को उसी रूप में वेगवान बनाये रखने में उनकी शिष्य परंपरा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। परमात्मा ने साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका रूपी चतुर्विध संघ की स्थापना की । इस जिनशासन का संवहन करते हुए भगवान महावीर की पाट परंपरा विगत 2500 से अधिक वर्षों से अक्षुण्ण - अखण्ड रूप से प्रकाशमान रही है जिसने सदा ही जिनाज्ञा अनुसार संघ का नेतृत्व किया है। समय-समय पर वटवृक्ष की भांति विशालता को प्राप्त चतुर्विध संघ की अनेकों शाखाएँ - धाराएँ प्रस्फुटित हुई हैं । इस कारण अनेकों गच्छ, अनेकों समुदाय अस्तित्व में आये । प्रस्तुत पुस्तक में भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर गणधर सुधर्म स्वामी जी से लेकर 77वें पट्टधर एवं तपागच्छीय श्री वल्लभ सूरि जी म. समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. के जीवन के प्रमुख बिंदुओं का सुन्दर संकलन - संग्रहण - लेखन किया गया है । जैन धर्म के गौरवशाली इतिहास सम्बन्धी जनमानस के कई स्वाभाविक प्रश्नों के समाधानों को भी अनावरित किया गया है। पंन्यासप्रवर श्री चिदानंद विजय जी म. के अथक परिश्रम के फलस्वरूप प्रस्तुत पुस्तक - महावीर पाट परंपरा बिंदु में सिंधु के समान पाठकगणों में सम्यक् दर्शन - सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र की त्रिवेणी को सुदृढ़ करेगी , यही भावना... - विजय वसंत सूरि

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