Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 327
________________ वर्तमान समय में विभिन्न गच्छो-विभिन्न समुदायों के अनेकानेक आचार्य भगवन्त चतुर्विध संघ का नेतृत्त्व कर रहे हैं। सभी का परम उद्देश्य जिनशासन की इस अखंड अक्षुण्ण धारा को वेगवान् बनाए रखना एवं शासन-नायक भगवान् श्री महावीर स्वामी के संदेशों-उपदेशों को सदा मौलिक रूप में प्रवाहित रखना है। ऐसे शासनप्रभावक आचार्यों में प.पू.आ. श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. का यशस्वी स्थान है। प्रभावशाली पूर्वाचार्यों के अहर्निश पुरुषार्थ से संपदा रूप प्राप्त चतुर्विध संघ की दशा एवं दिशा के उत्तरोत्तर उत्थान में उनका महनीय योगदान रहा है। वे इसी प्रकार नेतृत्त्व कुशलता से पाट परम्परा को आलोकित रखें एवं यह गुरु परम्परा युगों-युगों तक भगवान् महावीर एवं उनके शासन की प्रभावना कर चिरंजीवी बनाएं, यह जन-जन की आत्मीय कामना है। ... इस पंचम आरे के अंतिम आचार्य दुप्पस्सह सूरीश्वर जी तक यह पाट परम्परा सतत् प्रवहमान रहेगी, ऐसा सर्वज्ञ प्रभु महावीर का कथन है। गण-गच्छ-समुदाय की संकीर्णता से मुक्त संयम धर्म की सार्वभौमिकता से युक्त इस जिनशासन के धर्मसंघ का नेतृत्त्व सदा ही उच्चतम व्यक्तित्त्व की धनी विभूतियों ने किया है, कर रहे हैं और करते रहेंगे। नेतृत्त्व कुशलता के सुप्रभाव से ही भगवान् महावीर की वाणी युगों-युगों तक गुंजायमान रहेगी। ऐसी महिमाशाली, गौरवशाली गुरु पाट परम्परा को कोटिशः कोटिशः नमन.... महावीर पाट परम्परा 293

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