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कर मैत्री भाव का संचार किया। 'शांतिदूत' उनका विशेषण नहीं, पर्यायवाची बन गया है। ___साधना का प्रभापुंज उनके मुखमंडल पर दैदीप्यमान होता है। महाप्रभावशाली सूरिमंत्र की भी विधिवत् पाँच पीठिकाओं की साधना उन्होंने की है। कई समय से वे निरंतर एकासने की तपस्या कर रहे हैं और उसमें भी वे 8 द्रव्यों से अधिक नहीं वापरते। अखंड संयम साधना में प्रवृत्त आचार्यश्री जी निरंतर आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर अग्रसर हैं। साहित्य रचना :
प्रवचन प्रभावक आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. के जनप्रिय प्रवचनों - व्याख्यानों ने समाज में नवचेतना का संचार किया है। प्रवचन संबंधी उनकी पुस्तकें साहित्य जगत् में प्रकाशमान हैं। जैसे- नवपद पूजे, शिवपद पावे, आगम ज्ञान गंगा, भाव करे भव पार, श्रुत समुद्र की मणियां, सद्भाव साधना, जनकल्याणसकारी जैनधर्म, पुण्यपुरुष पेथड़शाह, दानवीर जगडूशाह, श्रमण महावीर, श्रुतशीलवारिधि, तनावों से मुक्ति पाने की कला इत्यादि अनेकों प्रवचन आधारित पुस्तकें, लघु पुस्तिकाएं, चित्रकथाओं का प्रकाशन आचार्य श्री जी के प्रबल पुरुषार्थ से हुआ। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं :
शांतिदूत आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. ने सैकड़ों स्थानों पर अंजनश्लाका - प्राणप्रतिष्ठा सम्पन्न कराई है। रियावड़ी गाँव (नागौर), दिल्ली, जंडियालागुरु, सरहिंद (पंजाब), भादरा (राजस्थान), सिरसा, रानियां, फरीदाबाद, देवकीकलां, जसनगर, पार्श्ववल्लभ इन्द्र धाम (कच्छ), ईडर, चिदम्बरम्, उतकोटा, पुरुषावाकम आदि अनेकों स्थलों पर जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई।
श्री हस्तिनापुर महातीर्थ की छत्रछाया में निर्मित अष्टापद जिनालय, श्री उवसग्गहरं महातीर्थ की छत्रछाया में निर्मित 7 शिखरबद्ध जिनालय, श्री ह्रींकार तीर्थ, खुडाला, जैतपुरा, जम्मू आदि भी अनेकों अतिशयकारी प्रतिष्ठोत्सवों से संघ में आश्चर्य और आनंद की अनुभूति है।
वि.सं. 2072 (ईस्वी सन् 2016) में तपागच्छ के 18 समुदायों का विराट श्रमण सम्मेलन पालीताणा के पारणा भवन में आयोजित हुआ । उसमें भी आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी ने वल्लभ समुदाय के गच्छाधिपति के रूप में सफल प्रतिनिधित्व किया।
महावीर पाट परम्परा
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