Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 323
________________ 77. आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी प्रसन्न वदन करुणा- नयन, शासनहित उग्र विहार । शासनप्रभावक सूरि नित्यानंद जी, नित् वन्दन बारम्बार || ज्ञानयोग-भक्तियोग-तपयोग - कर्मयोग के अविरल साधक, शांति - एकता - सद्भाव के अग्रणीय आराधक, गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. भगवान् महावीर स्वामी जी के 77वें पट्टालंकार हैं। जिनकी सुमधुर वाणी से सरस्वती और लक्ष्मी साक्षात् प्रवाहित होती है, ऐसे सद्धर्मधुरासंवाहक गुरुदेव जिनशासन के अगणित कार्यों का संपादन कर रहे हैं। जन्म एवं दीक्षा : जीरा (पंजाब) में लाला चिमनलाल जी का जन्म हुआ था। युवावस्था में धर्मपरायणा राजरानी जी से उनका विवाह सम्पन्न हुआ एवं वं दिल्ली आकर जीवनयापन करने लगे । अनिल एवं सुनील नामक उनके दो तेजस्वी पुत्र हुए। अनुक्रम से द्वितीय श्रावण वदि 4, वि.सं. 2015 को माँ राजरानी की कुक्षि से तृतीय पुत्र का जन्म हुआ एवं नाम प्रवीण रखा गया। उस समय मुनि प्रकाश विजय जी ने उन्हें हस्तिनापुर आकर गृहपति के पद पर बालाश्रम में कार्य करने का सुझाव दिया। फलतः लाला चिमनलाल जी सपरिवार हस्तिनापुर आ गए और निःस्वार्थ सेवा करने लगे। उनके तीनों पुत्र भी बालाश्रम में अध्ययन करते थे। पूरा परिवार प्रभु भक्ति में तल्लीन रहता था। लालाजी के वैराग्य रंग में पूरा परिवार ही रंग गया। भौतिक चकाचौंध से कोसों दूर पूरा परिवार श्रमण धर्म में प्रवेश करने को इच्छुक था। उन बालकों की आयु क्रमशः 13, 11 एवं 9 वर्ष थी। अनेकों लोगों बालदीक्षा का विरोध किया किंतु तीनों बालक संयम पथ पर चलने को अडिग रहे । फलस्वरूप मार्गशीर्ष शुक्ला 10 वि.सं. 2024 के दिन बड़ौत (उ.प्र.) में आचार्य श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. की निश्रा में ऐतिहासिक दीक्षा महोत्सव सम्पन्न हुआ। लाला विलायतीराम जी बने मुनि नयचंद्र विजय जी लाल चिमनलाल जी बने मुनि अनेकान्त विजय जी श्रीमती राजरानी जी बनी साध्वी अमितगुणा श्री जी महावीर पाट परम्परा 289

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