Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 303
________________ तपागच्छ परम्परा में संवेगी दीक्षा ग्रहण की। वासक्षेप देते हुए वृद्ध गुरु श्री बुद्धिविजय जी म. ने आत्माराम जी का नामकरण - मुनि श्री आनंद विजय जी के रूप में किया। अन्य साधुओं के भी नाम परिवर्तित हुए। बिशनचंद जी लक्ष्मीविजय जी बने, निहालचंद जी हर्षविजय जी बने, रामलाल जी कमलविजय जी बने, इत्यादि। शासन प्रभावना : ___ मुनि श्री बुद्धिविजय जी (बूटेराय जी) एवं मुनि श्री आनंद विजय जी (आत्माराम जी) की अंत:करण की भावना थी कि पंजाब क्षेत्र में धर्म का पुनरूद्धार कर शुद्ध प्राचीन मूर्तिपूजक जैन परम्परा को पुनर्जीवित किया जाए। अहमदाबाद, भावनगर, जोधपुर चातुर्मास करने के बाद गुरु आज्ञा से आनंद विजय जी ने पंजाब की ओर प्रयाण किया। ___ उस समय उनका घोर विरोध किया गया, अन्य सम्प्रदाय के दृष्टिरागियों द्वारा उन्हें गोचरी - पानी - स्थानक आदि कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया जाता था, किंतु मुनिश्री भी साहसी थे। वे कभी झुके नहीं। उन्होंने जिनमंदिरों के पुनरूद्धार चालू किए एवं परमात्मा को पूजने वाले सच्चे जैन श्रावक तैयार करने लगे। संपूर्ण भारत भर में उनकी धर्मक्रांति की विजय दुंदुभि बज उठी। मेड़ता में एक यति से उन्हें रोगोपहारिणी, अपराजिता आदि विद्यायें भी प्राप्त हुई। वि.सं. 1943 में उन्होंने शत्रुजय गिरिराज में चातुर्मास किया। भारत भर के संघों ने एक स्वर से उन्हें आचार्य पद ग्रहण करने की प्रार्थना की। जैन संघ में 235 वर्षों से तपागच्छ श्रमण परम्परा में आचार्य पद खाली रहा। समय की माँग एवं अति आग्रह के कारण मुनिश्री ने यह दायित्व स्वीकारा। मार्गशीर्ष वदि 5 के शुभ मुहूर्त में 40,000 लोगों की सुविशाल जनमेदिनी के मध्य आनंद विजय जी को हर्ष और उल्लास के साथ आचार्यपद प्रदान किया। अब वे आचार्य विजय आनंद सूरीश्वर जी (विजयानंद सूरि जी) के नाम से प्रख्यात हुए। यह संपूर्ण श्रमण परम्परा के लिए अत्यंत गौरव की बात बनी। वि.सं. 1944 (ईस्वी सन् 1887) में उन्होंने तेजस्वी युवक छगन को राधनपुर में दीक्षा प्रदान की जो मुनि वल्लभ विजय जी बने। गुरु आत्म का शिष्य-प्रशिष्य परिवार शनैःशनैः वृद्धि को ही प्राप्त होता रहा। अपने 42 चौमासों में उन्होंने पंजाब में 23, मारवाड़ में 6, उ. प्र. में 4, गुजरात में 5, सौराष्ट्र में 2 एवं दिल्ली मालवा में 1-1 चौमासे किये। पंजाब उनकी कृपा का विशेष केन्द्र था। पंजाबी गुरु भक्त उनसे पूछते थे कि गुरुदेव! आप हमें किसके महावीर पाट परम्परा 269

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