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रखा गया। उनकी बड़ी दीक्षा फाल्गुन सुदी 5 को भरूच में पंन्यास सिद्धि विजय जी की निश्रा में हुई। शासन प्रभावना : ____ मुनि समुद्र विजय के दीक्षोपरान्त उनका चरम एवं परम लक्ष्य-स्वाध्याय एवं गुरुसेवा रहा। उनके सांसारिक भाई-पुखराज ने भी दीक्षा ग्रहण की एवं उनका नाम सागर विजय जी रखा
गया।
समुद्र विजय जी की प्रतिभा अद्वितीय थी। उन्होंने शास्त्रों का गंभीर अध्ययन किया। उनकी सरलता उनकी अमोघ शक्ति थी। उनको शासन प्रभावना की कुशलता का नए दायित्वों को आयाम देते हुए वि.सं. 1993 में गणि व पंन्यास पदवी तथा वि.सं. 2008 में उपाध्याय पदवी से अलंकृत किया गया। इसी श्रृंखला में मुंबई के थाना नगर में माघ शुक्ला 5 (वसंत पंचमी) वि.सं. 2009 के दिवस आत्मवल्लभ नगर के निर्माण मालारोपण प्रसंगे आ. विजय वल्लभ सूरि . जी म.सा. की पावन निश्रा में समुद्र विजय को आचार्य पद से विभूषित किया गया। इस मंगल अवसर पर गुरु वल्लभ ने उन्हें अपना पट्टधर घोषित किया। अगले ही वर्ष वल्लभ सूरि जी का काल हो गया एवं समूचे संघ का दायित्व नृतन आचार्य श्री पर आ गया।
आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. ने जिनशासन की महती प्रभावना की एवं तीर्थंकर परमात्मा एवं गुरु भगवंत की आज्ञा अनुरूप धर्मप्रचार कर अनेक कार्यों को किया।
उन्होंने जैसलमेर के नवाब को प्रतिबोधित किया। उनकी उपदेश लब्धि गजब थी। जैसलमेर नरेश को उपदेश देकर उन्होंने एकादशी और अमावस्या के दिन शिकार न करना तथा माँस-मदिरा न खाने की प्रतिज्ञा दिलवाई। पालनपुर का नवाब भी आचार्यश्री का परम भक्त था। वि.सं. 2016 में वे आगरा (उ.प्र.) पधारे एवं लोहामण्डी जेल में कैदियों को उपदेश देने पधारे। उनके मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रवचन के प्रभाव से कैदियों की आँखें आँसुओं से भर गई एवं उन्होंने शेष जीवन निर्दोष जीने का संकल्प लिया। __सन् 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था, तब 23 नवंबर 1962 के दिन लुधियाना में राष्ट्र धर्म का अनन्य उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र रक्षा हेतु जीवन समर्पण का प्रेरणात्मक उद्बोधन दिया था। इससे देशप्रेम में उन्मत्त लोगों ने राष्ट्रकोष में काफी सोना दान दिया।
महावीर पाट परम्परा
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