Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 306
________________ 4) माघ सुदि 13, वि.सं. 1951 के दिन पट्टी में 5) मार्गशीर्ष सुदी पूर्णिमा, वि.सं. 1952 के दिन अंबाला शहर में 6) वैशाख सुदी पूर्णिमा, वि.सं. 1953 के दिन सनखतरा में कालधर्म : वि.सं. 1953 (सन् 1897) के चातुर्मास के लिए प.पू. विजयानंद सूरि जी गुजरावाला पध रे। वहाँ जैन गुरुकुल स्थापना की योजना थी किंतु आकस्मिक रूप से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। ज्येष्ठ सुदी 7 की रात्रि उनके श्वास का वेग बिगड़ गया। समूचे शिष्य परिवार से उन्होंने अंतिम मिच्छामि दुक्कडं किया, मुनि वल्लभ विजय जी को विद्या मंदिरों को स्थापित करने की बात स्मरण कराई एवं "लो भई! अब हम चलते हैं और सबको खमाते हैं" कहते-कहते 59 वर्ष 59 दिन की आयु में कालधर्म हो गया। संपूर्ण संघ में शून्यता व्याप्त हो गई। उनके कालधर्म के 5 वर्षों बाद पाटण में मुनि कमलविजय जी एवं 28 वर्षों बाद लाहौर में मुनि वल्लभ विजय जी को आचार्य पद प्रदान किया गया एवं गुरु आत्म के सुयोग्य पट्टधर के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। पंजाब देशोद्धारक के गुरु आत्म के आदेशों-उपदेशों को विजय वल्लभ सूरि जी महाराज ने पूर्णरूप से आत्मसात् किया। महावीर पाट परम्परा 272

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