Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 300
________________ 3) जिनालय वैशाख वदि 3, वि.सं. 1923 में किला - दीदारसिंह में श्री वासुपूज्य स्वामी जी का जिनमंदिर 4) 5) 6) वैशाख वदि 7, वि.सं. 1924 में रामनगर में प्रतिष्ठित श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय वैशाख सुदि 6, वि.सं. 1926 में पिंडदादनखां में श्री सुमतिनाथ स्वामी प्राचीन जिनमंदिर जम्मूतवी में प्रतिष्ठित श्री महावीर स्वामी जिनालय । इसका जीर्णोद्धार इनकी ही क्रमिक पाट परम्परा पर आए समुद्र सूरि जी म. ने कराया । कालधर्म : सद्धर्म संरक्षक बुद्धि विजय (बूटेराय) जी के प्रमुख 7 शिष्य गणि मुक्ति विजय (मूलचंद ) जी, वृद्धिविजय जी, नित्य (नीति) विजय जी, आनंद विजय जी, मोती विजय जी, ' खांति विजय जी एवं आचार्य विजयानंद सूरि ( आत्माराम ) जी महाराज सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध थे। - महावीर पाट परम्परा - त्याग-तपस्या एवं ध्यान के द्वारा बुद्धिविजय जी ने अहमदाबाद में सेठ दलपत भाई, भग्गूभाई के वंडे में एक अलग कमरें में ही जीवन की अंतिम घड़ियों तक निवास किया । वि.सं. 1932 से वि. सं. 1937 तक 6 चातुर्मास उन्होंने अहमदाबाद में किए । चैत्र वदि अमावस्या वि.सं. 1938 के दिन 13 दिन की बीमारी के बाद रात्रि के समय समाधिपूर्वक वहीं कालधर्म हो गया। साबरमती नंदी के किनारे चंदन की चिता में उनके नश्वर देह का अग्नि संस्कार किया गया। 266

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