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वि.सं. 1857 में उन्होंने संघ को सम्मेतशिखर तीर्थ के जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी, जिसके फलस्वरूप श्री खेमालाल शाह ने यह कार्य हाथ में लिया। रत्नत्रयी की आराधना करते-करते उन्होंने शासन की महती प्रभावना की। साहित्य रचना :
पं. पद्म विजय जी बहुश्रुत विद्वान थे। उन्होंने 5500 नए श्लोकों की रचना की। उनकी कुछ कृतियां इस प्रकार हैं- चातुर्मासिक देववंदन माला
___ - जैन कथा रत्न कोष - उत्तम विजय जी रास
- - नवपद पूजा - समरादित्य केवली रास (वि.सं. 1842) - जयानंद केवली रास (वि.सं. 1859) - नेमिनाथ चरित्र
- चौबीसी, बीसी, स्तवन, सज्झाय इनके शिष्य ने पाली भाषा में अध्यात्मसार सार्थ प्रश्नोत्तर की रचना की। कालधर्म :
पद्म विजय जी ने अपने जीवन में पालीताणा तीर्थ की 13 बार, गिरनार तीर्थ की 3 बार, शंखेश्वर जी तीर्थ की 21 बार, गोड़ी जी तीर्थ की 3 बार, तारंगा जी तीर्थ की 5 बार, आबू-सम्मेत शिखर तीर्थ की 1-1 बार यात्रा की।
सत्तावन वर्ष का चारित्र पालते हुए अहमदाबाद में मस्तक के अर्धभाग की व्याधि समाधि भाव से सहतें एवं तदुपरान्त भी 28 दिनों तक उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना करते-करते चैत्र सुदि 4 बुधवार वि.सं. 1862 के दिन शाम को प्रतिक्रमण के बाद वे समाधिमरण कर देह का त्याग कर देवलोक की ओर अग्रसर हुए। उनके पट्टधर पंन्यास रूप विजय जी हुए।
महावीर पाट परम्परा
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