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68. पंन्यास श्रीमद् रूप विजय जी गणि
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पृथ्वाचन
संवेगी सुसाधु परम्परा, रमणीय रचनाकार।
पंन्यासप्रवर श्री रूपविजय जी, नित् वंदन बारम्बार॥ पंन्यास पद्म विजय जी के शिष्य पंन्यास रूप विजय जी वीर शासन की संवेगी परम्परा के 68वें पट्टालंकार हुए। प्रभु भक्ति एवं साहित्य साधना इनके जीवन के प्रमुख अलंकार थे। उन्नीसवीं सदी के महान कवि एवं विद्वान् रूपविजय जी वैद्यक शास्त्रों में अति-निपुण थे। साहित्य रचना :
श्रीमान रूप विजय जी ने अनेक शास्त्रों, पूजाओं एवं सज्झायों की रचना की। उनके द्वारा संवत् 1880 में विक्रम राजा के समय के अम्बड विषय का रास उपलब्ध है, जिसमें विक्रम राजा के पराक्रम, पंचदण्ड आदि अद्भुत बातें हैं। इसके अलावा भी उनकी अनेक कृतियां मिलती हैं
पृथ्वीचंद्र गुणसागर जीवन चरित्र भाषांतर (वि.सं. 1880) 2) पद्मविजय गणि निर्वाण रास (वि.सं. 1892)
विमलमंत्री रास (वि.सं. 1900) पंच कल्याणक पूजा (वि.सं. 1885) पंच ज्ञान पूजा (वि.सं. 1887) वीस स्थानक पूजा (वि.सं. 1884-85) पिस्तालीस (45) आगम पूजा (वि.सं. 1885) स्नात्र पूजा चैत्री पूनम का देववंदन
आत्मबोध सज्झाय 11) मनः स्थिरीकरण सज्झाय इत्यादि।
महावीर पाट परम्परा
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