Book Title: Mahavir Pat Parampara
Author(s): Chidanandvijay
Publisher: Vijayvallabh Sadhna Kendra

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Page 286
________________ की। सेठ ताराचंद संघवी की सहायता से उनके न्याय शास्त्र सीखने का प्रबंध हुआ। तपागच्छ श्रीपूज्य परम्परा के भट्टारक धर्मसूरि जी ने वि.सं. 1810 में राधनपुर में मुनि पद्म विजय जी को पंडित (पन्यास) पद प्रदान किया। उनकी निश्रा में अनेकों छरी पालित संघ निकाले गए। पडत पदवी पश्चात् राधनपुर से गिरनार, सिद्धपुर-पालनपुर से आलू, लीबड़ी से गोडीजी, अहमदाबाद से पालीताणा इत्यादि संघ को कुशल आयोजन हुआ। संवत् 1814 के सूरत चातुर्मास पश्चात् वे बुरहानपुर संघ की विनती स्वीकार कर वहाँ पधारे। वहाँ वाद-विवाद में उन्होंने मूर्तिपूजा विरोधी स्थानकवासी मत को निरूत्तर किया। संवत् 1815-16 के दो चातुर्मास उन्होंने बुरहानपुर किए। तत्पश्चात् खंभात पधारे एवं गुरुदेव उत्तम विजय जी के दर्शनार्थ शत्रुजय गए। पालीताणा में सेठ रूपचंद भीम ने सुंदर प्रासाद निर्मित किए जिनमें प्रतिष्ठा पद्म विजय जी ने कराई। घोघा में चंद्रप्रभ स्वामी देरासर प्रतिष्ठित किए। संवत् 1821 का चातुर्मास उन्होंने सिद्धपुर किया। वहाँ से अहमदाबाद - सूरत होते हुए पालीताणा पधारे जहाँ ताराचंद संघवी की भावनानुसार 195 जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई। तत्पश्चात् वे सम्मेत शिखर की यात्रार्थ पधारे। मादाबाद निवासी सगालचंद ओसवाल द्वारा निर्मित भव्य जिनालय की प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई। वि.सं. 1827 में पं. उत्तम विजय जी का कालधर्म हुआ। तब संवेगी परम्परा का दायित्व भी पद्म विजय जी पर आ गया। .. वि.सं. 1838 में लींबड़ी में चातुर्मास किया एवं भव्य रूप से उपधान कराया। संवत् 1839 का भी चातुर्मास उन्होंने लींबड़ी किया। तब 109 (75) मासक्षमणों की अनुमोदनीय तपश्चर्या हुई। रांदेर में भी स्थानकवासियों के साथ शास्त्रार्थ में सत्य मत प्ररूपक पं. पद्म विजय जी विजयी हुए। श्रावण वदि 8, सोमवार, वि.सं. 1821 के दिन उन्होंने प्रेरणा देकर सूत्रकृतांगनियुक्ति की प्रति सेठ कसलचंद द्वारा लिखवाई। वि.सं. 1854 में श्रीमाली जाति के लक्ष्मीचंद सेठ ने श्री सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा प्रतिष्ठा अहमदाबाद में माघ वदी 5 वि.सं. 1854 में पद्म विजय जी के हाथों कराई। तथा 472 अन्य जिनप्रतिमाएं व 49 सिद्धचक्र यंत्र भी भराए। इनके प्रवचन भी जैन आगम पर ही पूर्णतः आधारित होते थे। सूत्रकृतांग सूत्र, रायपसेणी सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, अनुयोगद्वार सूत्र, बृहत्कल्प सूत्र इत्यादि आगम ग्रंथ वे प्रवचन में सरस शैली में वांचते थे। महावीर पाट परम्परा 252

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