________________
घ. सहस्त्रकूट की रचना इत्यादि।
सहस्त्रकूट विजय सिंह सूरि जी के शास्त्र शोध का सुंदर फल था। सहस्त्रकूट में 1008 अथवा 1024 तीर्थकरों की स्थापना होती है। उन्होंने इसका आदर्श रूप बनाया जिसका अनुसरण करते हुए शत्रुजय तीर्थ में 2 एवं पाटण में 1 सहस्त्रकूट की संरचना की गई। यह आचार्यश्री जी की अनुमोदनीय देन रही। कालधर्मः __पाटण, राजनगर, खंभात चातुर्मास करते हुए ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए उनका पदार्पण अहमदाबाद हुआ। वहाँ विराजित देवसूरि जी म. के दर्शन कर सिंहसूरि जी ने कृतकृत्य अनुभव किया। अचानक से किसी व्याधि ने उनके देह पर प्रकोप किया। शारीरिक वेदना को सहन करते-करते एवं हृदय में सुदैव-सुगुरु-सुधर्म को स्थापित रखें, आषाढ़ सुदि 2 शनिवार वि.सं. 1709 में अहमदाबाद के निकटवर्ती नवीनपुर (नानापुरा) में वे कालधर्म को प्राप्त हुए। ___65 वर्ष की आयु में विजय सिंह सूरि जी का निधन हो गया एवं विजय देवसूरि जी के होते हुए उनके पटधर का देवलोकगमन सभी के स्तब्ध एवं अचम्भित कर गया। संघ में निरंतर यतियों का प्राबल्य बढ़ रहा था। अतः उनके क्रियोद्धार की भावना को मूर्तरूप उनके शिष्य पंन्यास सत्य विजय जी ने किया।
. समकालीन प्रभावक गुरुदेव . महोपाध्याय विनय विजय जी:
उपाध्याय श्री विनय विजय जी का जन्म वणिक् तेजपाल की पत्नी राजश्री की कुक्षि से हुआ एवं हीरविजय सूरि जी के शिष्य उपाध्याय कीर्ति विजय जी के वे शिष्य बने। ज्ञान के प्रति इनका तीव्र अनुराग था। विक्रम की 17 वीं-18वीं शताब्दी के वे अधिकृत विद्वान् थे। सिंह सूरि जी की प्रेरणा से जिस सहस्त्रकूट का निर्माण कराया गया, उसकी प्रतिष्ठा उनके कालोपरान्त जेठ सुदि 6 वि.सं. 1710 के दिन पालीताणा पर विनय विजय जी ने ही कराई थी।
महावीर पाट परम्परा
233