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अपने प्रमुख शिष्य विमलप्रभ को आचार्य पद दिया था। विमलप्रभ सूरि जी की आयुष्य अल्प थी एवं उसी वर्ष ही वे भी आकस्मिक कालधर्म को प्राप्त हो गए। अतः सोमप्रभ सूरि जी ने सोमतिलक सूरि जी को पट्टधर बनाया। इनके अनेक शिष्य थे, किंतु प्रमुख 4 आचार्य बनेआचार्य विमलप्रभ सूरि , आचार्य परमानंद सूरि, आचार्य पद्मतिलक सूरि, आचार्य सोमतिलक सूरि, सभी शासन प्रभावक हुए।
संपूर्ण गच्छ के योग-क्षेम में वे निपुण थे। द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की परिस्थिति जानकर उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया था। कोंकण देश (गुजरात) में अत्यधिक वर्षा होने से एवं मारवाड़ में पानी की कमी के कारण अप्काय की विराधना के भय से कोंकण देश में और शुद्ध जल की दुर्लभता से मारवाड़ में अपने सभी साधु-साध्वियों का विहार बंद कराया। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ : ___मांडवगढ़ का मंत्री पेथड़शाह आचार्य धर्मघोष सूरि जी का परम भक्त था। धर्मघोष सूरि जी के कालधर्मोपरान्त पेथड़शाह ने भिन्न-भिन्न स्थानों में 84 जिन प्रासाद प्रतिष्ठित कराए एवं सोमप्रभ सूरि जी के करकमलों के स्थापित कराए। आचार्य सोमतिलक सूरि कृत 'पृथ्वीधर साधुप्रतिष्ठित जिनस्तोत्र' एवं मुनिसुंदर सूरि कृत 'गुर्वावली' में इन 84 जिनालयों का जिक्र है। इनमें से अनेकों जिन प्रतिमाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आज भी जन-जन के श्रद्धा के केन्द्र है। उसमें से प्रमुख 76 के नाम प्राप्त होते हैंस्थान
मूल प्रतिमा स्थान मूल 1) माण्डवगढ़ आदिनाथ जी 2) निम्बस्थूरनगर नेमिनाथ जी 3) निम्बस्थूर तलेटी पार्श्वनाथ जी 4) उज्जैन
पार्श्वनाथ जी 5) विक्रमपुर नेमिनाथ जी 6) मुकुटिकापुरी पार्श्वनाथ जी 7) मुकुटिकापुरी आदिनाथ जी 8) विघ्नपुर
मल्लिनाथ जी 9) आशापुर पार्श्वनाथ जी __10) घोषकी नगर आदिनाथ जी 11) आर्यापुर शांतिनाथ जी 12) धारानगर
नेमिनाथ जी 13) वर्धनपुर(बदनावर) नेमिनाथ जी 14) चंद्रकपुर (चंडावली) आदिनाथ जी
प्रतिमा
महावीर पाट परम्परा
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