________________
‘अनुसार वैशाख सुदि 13 सोमवार वि.सं. 1660 में प्रतिष्ठित)। 7. विमलनाथ जिनालय, सवाई माधोपुर में मूलनायक विमलनाथ जी की पाषाण की प्रतिमा
लेख अनुसार आषाढ़ सुदि-2, शनिवार वि.सं. 1668 में प्रतिष्ठित। पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात में चिंतामणि पार्श्वनाथ के परिकर पर उत्कीर्ण लेख अनुसार आषाढ़ सुदि-2 शनिवार वि.सं. 1608 में प्रतिष्ठित।
देरासर, जयपुर में प्राप्त सुमतिनाथ जी की धातु की प्रतिमा के परिकर पर उत्कीर्ण
(लेख अनुसार वैशाख सुदि 5 सोमवार वि.सं. 1670 में प्रतिष्ठित)। 10. सुमतिनाथ जिनालय, माधवलाल बाबू की धर्मशाला, पालीताणा में प्राप्त आदिनाथ जी
__ की प्रतिमा। (लेख अनुसार माघ सुदि-2 वि.सं. 1670 में प्रतिष्ठित)। कालधर्मः
गाँव-गाँव में जिन धर्म का प्रचार करते-करते ज्येष्ठ वदी 11 वि.सं. 1671 (सन् 1714) में खंभात के पास अकबर पुर में विजय सेन सूरि जी का स्वर्गवास हो गया। अकबरपुरा में जहाँ सूरिजी का अग्नि संस्कार हुआ, वहाँ उनका स्तूप बनाने के लिए बादशाह जहांगीर ने 10 बीघा जमीन जैन श्रीसंघ को दी। वहाँ पर खंभात निवासी शाह जगसी के पुत्र सोम जी शाह ने सूरिजी का भव्य स्तूप बनवाया।
वर्तमान में अकबरपुर में कुछ भी नहीं है लेकिन खंभात के भोयरावाडे में शान्तिनाथ जी का मंदिर है। मूल गंभारे में मूलवेदी के बायें हाथ की तरफ एक पादुका वाला पत्थर है और उसके लेख से यही ज्ञात होता है- यह वही पादुका है जिसका निर्माण सोमजी शाह ने कराया और वि.सं. 1672 (सन्- 1715) में देवसूरि जी की निश्रा में प्रतिष्ठित की। संभवतः काल के प्रभाव से अकबरपुर की स्थिति खराब हो जाने पर पादुका वाला पत्थर यहाँ लाया गया होगा।
महावीर पाट परम्परा
223