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की प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा। कालधर्म :
रायखंड वडली के वीशा पोरवाड़ ने तारंगा तीर्थ में अजितनाथ जी की प्रतिष्ठा करवाई। उसके बाद वि.सं. 1492 में प.पू देवसुंदर सूरि जी ओडछा में इस नश्वर देह का परित्याग कर कालधर्म को प्राप्त हुए। उस समय उनके पट्टशिष्य आचार्य सोमसुंदर सूरि जी देवपाटण में विचर रहे थे। देवसुंदर सूरि जी के परम भक्त सेठ धारशी ने 15 दिनों का उपवास करके शासन देव को साध्य किया। उस देव ने सेठ को बताया कि महाविदेह क्षेत्र विराजित श्री सीमंधर स्वामी ने फरमाया है कि देवसुंदर सूरि जी तीसरे भव में जन्म-जरा-मृत्यु से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। ऐसे आसन्न भव्य गुरुदेव को स्मरणकर चतुर्विध संघ ने स्वयं को कृतार्थ महसूस किया।
महावीर पाट परम्परा
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