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संघ व्यवस्था :
आचार्य मुनिसुंदर सूरि जी के अनेक प्रभावक शिष्य थे। आचार्य सोमसुंदर सूरि जी म. ने क्रियोद्धारपरक संघ संचालन की जिस व्यवस्था का पुनरूद्धार किया था, आचार्य मुनिसुंदर सूरि जी ने भी उसी का अनुसरण करते हुए चतुर्विध संघ का कुशल संचालन किया। मुनिसुंदर सूरि जी के शिष्यों में विशालराज सूरि जी, महोपाध्याय लक्ष्मीभद्र गणि जी, उपाध्याय शिवसमुद्र गणि जी, पं. शुभशील गणि जी आदि अनेक साधु थे। इनकी पाट पर आचार्य रत्नशेखर सूरि जी विराजित हुए। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ :
आचार्यश्री जी के करकमलों से प्रतिष्ठित अनेकों प्रभु प्रतिमाएँ आज यत्र-तत्र प्राप्त होती हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं1). मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारवाड़ो, खंभात में प्राप्त तीर्थंकर प्रभु की प्रतिमा
(लेखानुसार वैशाख सुदि 3 वि.सं. 1489 में प्रतिष्ठित) 2) पार्श्वनाथ देरासर, नाडोल में प्राप्त आदिनाथ (ऋषभदेव) जी की धातु की प्रतिमा
(लेखानुसार वैशाख वदि 4 वि.सं. 1497 में प्रतिष्ठित) सुमतिनाथ मुख्यं बावन जिनालय, मातर में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी की धातु प्रतिमा (लेखानुसार आश्विन सुदि 10 वि.सं. 1499 में प्रतिष्ठित) श्रीस्वामी जी का मंदिर, रोशनमोहल्ला, आगरा में प्राप्त चंद्रप्रभ स्वामी जी की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 5, गुरुवार, वि.सं. 1500 में प्रतिष्ठित) शांतिनाथ जिनालय, देशनोंक में प्राप्त कुंथुनाथ जी की प्रतिमा (लेख के अनुसार वैशाख वदि 5, सोमवार, वि.सं. 1501 में प्रतिष्ठित) । भीडभंजन पार्श्वनाथ जिनालय, खेड़ा में प्राप्त शीतलनाथ जी चौबीसी प्रतिमा (लेखानुसार
वैशाख सुदि 2, शनिवार, वि.सं. 1501 में प्रतिष्ठित) 7) जैनमंदिर, इतवारी बाजार, नागपुर में प्राप्त अभिनंदन स्वामी जी की धातु की प्रतिमा
(लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 10 वि.सं. 1501 में प्रतिष्ठित)
महावीर पाट परम्परा
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