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ने 6 मास की तपस्या की? बादशाह ने मंगल चौधरी और कमर खाँ- दो भाईयों को यह जानने के लिए भेजा। चंपा श्राविका ने कहा-भाई यह मेरी शक्ति नहीं। हमारे 18 दूषणों से रहित ऋषभदेव जी से लेकर महावीर पर्यंत 24 तीर्थंकर देव एवं पूर्ण विरागी-भोग विलासों के त्यागी जैनाचार्य विजय हीर सूरि जी की शक्ति से यइ तपस्या हुई। बादशाह के मन में विचार हुआ कि ऐसे गुरु महाराज को जरूर बुलाना चाहिए। उस समय वे गांधार नगर में विराजमान थे।
सूबे की ओर से विजय हीर सूरि जी को फतेहपुर पधारने का पत्र भेजा गया। श्रावक वर्ग से विचार-विमर्श करके राजा का आग्रह उन्होंने स्वीकार किया। बादशाह ने यह भी लिखा कि हाथी-घोड़ा-पालकी-जिसकी भी आवश्यकता हो, वो उपलब्ध कराए जाएंगे किन्तु हीर सूरि जी आचार के पक्के थे, इसलिए सब मना कर दिया। सूरि जी ने विहार चालू किया। ज्येष्ठ सुदि 12 संवत् 1639 को गुरुदेव का फतेहपुर सीकरी में 66 साधुओं सहित भव्य प्रवेश सम्पन्न हुआ। तेरस को विजय हीर सूरि जी- सैद्धान्तिक शिरोमणि उपाध्याय विमलहर्ष जी, शतावध नी शान्तिचंद्र जी, पंन्यास सहजसागर जी, पंन्यास सिंहविमल जी, पंन्यास हेमविजय, व्याकरण चूड़मणि लाभविजय जी आदि 13 साधुओं के साथ बादशाह के दरबार पहुँचे। किंतु गलीचे के ऊपर वे नहीं चले। हीर सूरि जी ने कहा हम जीवों की रक्षा करते हुए ही चलते हैं। राजा ने गलीचा उठवाया तो हजारों कीड़े नीचे थे। बादशाह उनकी प्रवृत्ति से प्रभावित हुआ। धीरेधीरे उन दोनो का समीप्य बढ़ता गया एवं गुरुदेव ने जैनधर्म का ज्ञान प्रवाहित कर बादशाह की पिपासा को तृप्त किया।
अहिंसा का महत्त्व समझकर बादशाह का हृदय पसीज आता था। उसे आत्मग्लानि हुई कि उसने 14,000 हिरण, 12,000 चीते, 500 बाघ, 22,000 कुत्तों को मारा, सवा सेर चिड़ियों की जिह्वा खाता रहा। हीर सूरि जी ने पावन उपदेश से अकबर बादशाह ने जिन धर्म का महत्त्व समझ अनेक कार्य किए1. गुजरात, मालबा, बिहार, अयोध्या, प्रयाग, फतेहपुर, दिल्ली, लाहौर, मुलतान, काबुल,
अजमेर व बंगाल-12 सूबों में षण्मासिक (6 महीनों की) अमारि प्रवर्तन कराया व जज़िया
टैक्स बंद की। 2. पर्युषण के 8 व आस-पास के 4 दिनों में संपूर्ण राज्य में बूचड़खाने, कत्लखाने, शिकार
आदि पर पूर्ण पाबन्दी यानि सर्वत्र अहिंसा का संदेश।
महावीर पाट परम्परा
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