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आचार्य के नाम में पहले 'विजय' शब्द लगाया जाने लगा।
प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएँ :
प.पू. दान सूरि जी म.सा. ने खंभात, अहमदाबाद, पाटण, महेसाणा, गंधार, बंदर आदि अनेक स्थानों में सैंकड़ों जिनबिंबों की प्रतिष्ठा कराई थी। कालक्रम से आज वे यत्र-तत्र प्राप्त होती है। वर्तमान समय में उनके हाथों प्रतिष्ठित प्रतिमाएं निम्न स्थानों पर उपलब्ध हैं
1) मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय, भरूच में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातुं की जिनप्रतिमा (लेख अनुसार माघ सुदि 12 शुक्रवार वि. सं. 1592 में प्रतिष्ठित )
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सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, मातर में प्राप्त आदिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेख अनुसार वैशाख सुदि 6 सोमवार वि. सं. 1595 में प्रतिष्ठित )
उपकेशगच्छीय शांतिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी में प्राप्त आदिनाथ जी की धातुप्रतिमा (लेख अनुसार वैशाख सुदि 5 गुरुवार वि. सं. 1598 में प्रतिष्ठित )
महावीर जिनालय, पीड़वाड़ा में महावीर प्रासाद की देहरी पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार माघ वदि 8 शुक्रवार वि. सं. 1603 में प्रतिष्ठित
शांतिनाथ जिनालय, कुमारपाड़ो व सोमपार्श्वनाथ जिनालय, संघवी पाड़ा - खंभात में प्राप्त जिनप्रतिमाएं (लेख अनुसार वैशाख सुदि 7 वि.सं. 1605 में प्रतिष्ठित )
आदिनाथ जिनालय, पटोलिया पोल- वड़ोदरा में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु प्रतिमा (लेख अनुसार वैशाख सुदि 7 वि.सं. 1605 में प्रतिष्ठित)
थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर में प्राप्त आदिनाथ जी की प्रतिमा (प्रतिमा लेख के अनुसार फाल्गुन वदि 2 सोमवार वि. सं. 1610 में प्रतिष्ठित )
शांतिनाथ जिनालय, कोट, मुंबई में प्राप्त आदिनाथ जी की चौबीसी प्रतिमा (लेख अनुसार वैशाख सुदि 10 रविवार वि. सं. 1616 में प्रतिष्ठित )
धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी, अयोध्या में प्राप्त पद्मप्रभ जी की प्रतिमा (प्रतिमालेख अनुसार ज्येष्ठ सुदि 5 सोमवार वि. सं. 1617 में प्रतिष्ठित )
महावीर पाट परम्परा
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