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न वोहराना और यथाशक्ति तप करना ।
10) कोई तिथि दो हों, तो एक दिवस विगय न वोहराना । 11) पात्रों को रोगन (रंग) नहीं करना ।
पात्रा काला काटुला वापरना (शोभित नहीं करना)
12)
13) योग हुए बिना सिद्धांत की वाचना न करना ।
14) एक समाचारी वाला साधु दूसरे उपाश्रय में रहने आए तो प्रथम गीतार्थ को वंदन करें। उसके बाद शय्यातर गृह से वोहराएं।
15) दिवस में 8 थोय वाला देववंदन करना ।
16) दिन में 2500 गाथा का स्वाध्याय करना । न हो सके तो कम से 100 गाथा का सज्झाय- ध्यान अवश्य करना ।
17)
वस्त्र,
पात्र, कांबली आदि उपकरण स्वयं उठाना, गृहस्थ से नहीं उठाना ।
18) वर्ष में एक ही बार काप निकालना ( कपड़े धोना ) । दूसरी बार नहीं निकालना ।
19) पोसाल (पौषधशाला) में किसी को नहीं जाना ।
20) पोसाल में पढ़ने के लिए नहीं जाना ।
21)
एक हजार श्लोक से ज्यादा लहिया (लेखक) के पास नहीं लिखवाना।.
22)
द्रव्य (धन) देकर कोई भी ब्राह्मण के पास न पढ़े।
23)
जिस गाँव में चौमासा रहे हो, चौमासा उतरने के बाद वस्त्र वहोरना नहीं कल्पता ।
24)
अकाल स्वाध्याय पर आयंबिल करना।
25) सदैव एकाशणा ( एकासना) करना ।
26) बेला आदि के पारणे गुरु कहे तो तप करना ।
27) 'परिट्ठावणियागारेणं' न किया जाए।
अष्टमी, चौदस, शुक्ल पंचमी ऐसी 5 तिथि पर उपवास करना ।
28)
29 ) अष्टमी - चौदस को विहार नहीं करना ।
महावीर पाट परम्परा
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