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8) संभवनाथ, देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद एवं चंद्रप्रभ जिनालय, सेंडहर्स्ट रोड, मुंबई
में प्राप्त आदिनाथ जी की धातु प्रतिमा (लेखानुसार आषाढ़ सुदि 2 वि.सं. 1501 में
प्रतिष्ठित) 9) गोड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, उदयपुर में प्राप्त सुमतिनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसार माघ
वदी 5, गुरुवार, वि.सं. 1501 में प्रतिष्ठित) 10) चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर में प्राप्त शांतिनाथ जी, विमलनाथ जी, मुनिसुव्रत
__स्वामी की प्रतिमा (लेखानुसार माघ वदि 6 वि.सं. 1501 में प्रतिष्ठित) कालधर्म :
संघ संचालन, साहित्य रचना एवं स्मारक निर्माण आदि कार्य करते हुए पूज्य आचार्य मुनिसुंदर सूरि जी ने शासन की महती प्रभावना की। सहस्त्रावधानी आचार्य विजय मुनिसुंदर सूरि जी 67 वर्ष की आयु में कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा वि.सं. 1503 के दिन श्री चरणों में विलीन हो गए।
उनकी जीवन ज्योति बुझ जाने पर भी उनकी साहित्य ज्योति ने सदा ही जिनशासन के लिए प्रकाश का सर्जन किया। अपनी पुण्य उपादेयता के बल पर आज भी सर्वत्र ‘संतिकर' का पठन करते हुए उनका नाम उच्चारण कर जिह्वा को पवित्र किया जाता है एवं तपागच्छ की ऐसी दिव्य विभूति को स्मरण किया जाता है।
महावीर पाट परम्परा
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