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में पार्श्वनाथ जी का मंदिर बनवाया। उनमें से 21 जीर्णोद्धार आचार्यश्री द्वारा हुए। ईडर के नगरसेठ संघवी वत्सराज ओसवाल के पुत्र गोविंद ने आचार्यश्री की निश्रा में शत्रुजय, गिरनार, तारंगा आदि तीर्थों का संघ निकाला एवं वि.सं. 1479 में सोमसुंदर सूरि जी के हाथों तारंगा तीर्थ के कुमारविहार में अजितनाथ जी की नई प्रतिमा भराई। __ शास्त्रों की सुरक्षा हेतु भी सोमसुंदर सूरि जी प्रतिबद्ध थे। उनके सदुपदेश से सेठ धरमशी पोरवाड़ ने पाटण में ग्रंथभंडार स्थापित किया। उसके लिए वि.सं. 1474 में 1,00,000 श्लोक
और वि.सं. 1481 में 2,00,000 श्लोकात्मक आगम आदि ग्रंथ लिखवाए। वि.सं. 1498 में उनकी प्रेरणा से 'जैन सिद्धांत भण्डार' की स्थापना की गई। चतुर्मुखी दिशा में जैनधर्म की जाहो-जलाली हो रही थी। शासन के विविध क्षेत्रों के कार्य आचार्यश्री ने सम्पन्न कराए। साहित्य रचना : आचार्य सोमसुंदर सूरि जी द्वारा रचित कृतियां इस प्रकार हैं1) आराधना रास (वि.सं. 1450) 2) उपदेशमाला बालावबोध (वि.सं. 1485) 3) षष्ठिशतक बालावबोध (वि.सं. 1496) 4) योगशास्त्र बालावबोध 5) भक्तामर स्तोत्र बालावबोध 6) आराधना पताका बालावबोध 7) षडावश्यक बालावबोध
8) नवतत्त्व बालावबोध (वि.सं.1502) . 9) अष्टादश स्तवी (वि.सं. 1490) ___10) आतुरप्रत्याख्यान टीका 11) आवश्यक नियुक्ति अवचूरि 12) इलादुर्गऋषभ-जिनस्तवन 13) चैत्यवन्दन सूत्र भाष्य टीका। 14) जिनकल्याणकादि स्तवन 15) जिनभव स्तोत्र
16) पार्श्व स्तोत्र 17) श्राद्धजीत कल्पवृत्ति
18) षट्भाषामय स्तव 19) सप्ततिका सूत्र-चूर्णि
20) साधु सामाचारी कुलक 21) यतिजीतकल्प रत्नकोश
22) अर्बुदकल्प नेमिनाथ नवरस (वि.सं. 1480) 23) स्थूलिभद्र फाग (वि.सं. 1491) 24) नवखंड पार्श्वनाथाष्टक
महावीर पाट परम्परा
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