________________
- लेप की सन्निधि रखने की छूट, इत्यादि।
ये धीरे-धीरे इतने ज्यादा विस्तृत हो गई कि साधु-साध्वियों में पर्याप्त मात्रा में शिथिलाचार व्याप्त हो गया एवं इसी कारण सोमसुंदर जी को उन्हें सही मार्ग पर लाने हेतु ऐसे पट्टक की रचना कर उन्हें आगमानुसार आचरण करने का मार्गदर्शन व निर्देशन प्रदान किया। अन्य गच्छ वाले साधु-साध्वी जी भी प्रायश्चित्त लेने इनके पास आते थे। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं : . ___ आचार्य सोमसुंदर सूरि जी ने अनेकों स्थलों पर हजारों प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएं कराई। उस समय की प्रतिष्ठित प्रतिमाएं आज कुछ मूलस्थान पर ही हैं. एवं कुछ अन्यत्र पहुँच गई। भिन्न-भिन्न स्थलों पर उनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं1) मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी जी की पाषाण (पत्थर) प्रतिमा।
(लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 5, वि.सं. 1470 में प्रतिष्ठित) 2) खरतरगच्छीय बड़ा मंदिर, तूलपट्टी, कलकत्ता में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु की
प्रतिमा। (लेखानुसार माघ वदि 11 रविवार वि.सं. 1475 में प्रतिष्ठित) . 3) कुंथुनाथ देरासर, वडनगर में प्राप्त अभिनंदन स्वामी जी की धातु की प्रतिमा। (लेखानुसार
माघ वदि 4 वि.सं. 1479 में प्रतिष्ठित)। चिंतामणि जी का मंदिर, ग्वालियर में प्राप्त महावीर स्वामी जी की प्रतिमा (लेखानुसार फाल्गुन सुदि 3 शनिवार, वि.सं. 1482 में प्रतिष्ठित) कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, वीसनगर में प्राप्त धर्मनाथ जी की धातु की जिनप्रतिमा (लेखानुसार वैशाख सुदि 3 वि.सं. 1484 में प्रतिष्ठित) . बावन जिनालय, उदयपुर के भूगर्भ में संरक्षित प्राप्त नंदीश्वर पट्ट पर उत्कीर्ण लेख
के अनुसार वैशाख सुदि 3 बुधवार वि.सं. 1485 में प्रतिष्ठित। 7) जैन मंदिर, भीलडिया तीर्थ में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार
मार्गशीर्ष वदि 5 गुरुवार वि.सं. 1488 में प्रतिष्ठित। 8) शांतिनाथ जिनालय, राधनपुर में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेख के
महावीर पाट परम्परा
172