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करना।
8) स्थंडिल-मात्रा जाने हेतु या आहारपानी वोहरने जाते रास्ते में ईर्यासमिति पालना।
प्रमार्जनापूर्वक ही चलना अथवा 5 खमासमण की आलोचना लेना। 10) भाषासमिति पालना अथवा ईरियावहिय पूर्वक 1 लोगस्स की आलोचना। 11) प्रतिलेखना करते समय बोलना नहीं। 12) एषणासमिति पालना, धोवण वाला सचित्त जल नहीं लेना। ' 13) आदानभंडमत्तनिक्षेपणा समिति पालना। उपधि प्रमुख पूँजी प्रमार्जी भूमि पर स्थापित करना। 14) डांडा प्रमुख उपधि बदलें तो 1 आयंबिल अथवा 100 गाथा का सज्झाय करना। 15) पारिष्ठापनिका समिति पालना। भोजन परठते किसी जीव का नाश हो तो नीवि करना। 16) स्थंडिल, मात्रा वगैरह करने के परठने स्थान पर 'अणुजाणह जस्सुग्गहो' प्रथम कहना
और परठने के बाद 3 बार 'वोसिरे' कहना। 17) मन/वचन रागाकुल हो तो 1 नीवि करना। काया की कुचेष्टा हो तो उपवास (आयबिल) करना। 18) बेइन्द्रिय प्रमुख जीवों की विराधना हो तो जितनी इन्द्रियाँ, उतने नीवि करना। 19) गुरु द्वारा गोचरी देखे बिना नहीं वापरना। 20) एक स्त्री के साथ वार्तालाप नहीं करना। 21) सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व जलपान खत्म करना। रात्रि में उकाला-पानी न वापरना। 22) सूर्योदय के बाद सूर्य दिख जाने पर जलपान करना। अणाहारी औषधि भी उपाश्रय में
रखना-रखवाना नहीं। 23) यथाशक्ति तपाचार पालना । योगवहन करे बिना अवग्रहित भिक्षा न लाना। 24) आयंबिल / नीवि में विगय नहीं वापरना अथवा आलोचना लेना। 25) उस दरम्यान 3 नीवी लगातार हो और विगई वापरने के दिन निवियातां ग्रहण न करना
और 2 दिन लगातार खास कारण के बिना विगई नहीं वापरना। 26) प्रत्येक अष्टमी चौदस को यथाशक्ति उपवास करना। 27) प्रतिदिन द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का अभिग्रह लेना अथवा जीतकल्पानुसार प्रायश्चित।
महावीर पाट परम्परा
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