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आसड ने 'विवेकमंजरी' नामक ग्रंथ की रचना की तथा सिंह सूरि जी ने उसको शुद्ध कर टीका रचा।
संघ व्यवस्था :
सिंह सूरि जी ने अत्यंत कुशल रूप में जिनशासन व चतुर्विध संघ का नायकत्व किया। उनका शिष्य समुदाय भी विस्तृत था। सिंह सूरि जी के प्रमुख 3 शिष्य आचार्य थे1) आचार्य हेमचन्द्र सूरि जी : इन्होंने संसार दुःख को दूर करने वाले वैराग्यरसपोषित 'नाभेयनेमि
- द्विसंधान काव्य' रचा जिसका कवि चक्रवर्ती श्रीपाल पोरवाल ने संशोधन किया। इसकी प्रशस्ति में आचार्य मुनिचंद्र सूरि इत्यादि गुरुपरम्परा का भी विवरण है। आचार्य सोमप्रभ सूरि जी : ये शतार्थी के रूप में प्रसिद्ध थे, जो एक श्लोक के 100 अर्थ करने में समर्थ थे। तर्कशास्त्र में पटुता, काव्य में दक्षता एवं व्याख्यान शैली
में इनकी विलक्षणता विशिष्ट थी। 3) आचार्य मणिरत्न सूरि जी : ये दीर्घजीवी आचार्य थे। तपागच्छ उन्नायक आचार्य
जगच्चंद्र सूरि जी इनके शिष्य थे। सिंह सूरि जी के पाट पर उनके शिष्यद्वय - आचार्य सोमप्रभ सूरि जी एवं आचार्य मणिरत्न सूरि जी विराजमान हुए। कालधर्म :
जिनशासन की महती प्रभावना करते हुए आचार्य सिंह जी वि.सं. 1235 के आसपास स्वर्गवासी बने। जैनाचार्य मलयगिरि सूरि जी इनके समकालीन हुए।
. समकालीन प्रभावक आचार्य . आचार्य मलयगिरि सूरि जी : ___आचार्य मलयगिरि सूरि जी नाम से भी मलयगिरि एवं ज्ञान से भी मलयगिरि थे। संस्कृत भाषा पर उनका प्रभुत्व था। आचार्य हेमचन्द्र सूरि जी, आचार्य देवेन्द्र सूरि जी एवं आचार्य
महावीर पाट परम्परा
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