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कालधर्म :
गच्छभेद होने पर श्रावक-श्राविका वर्ग में भी आश्चर्य छा गया। विचारशील श्रावकों ने जिनप्रतिमा समक्ष तपस्या व आराधना की। शासनदेवी प्रकट हुई। संग्राम सोनी की जिज्ञासा पर शासनदेवी ने कहा कि आचार्य देवेन्द्र सूरि युगोत्तम आचार्य पुंगव है। उनकी गच्छ परम्परा अनेकों सदियों तक चलेगी। वे क्रियापरायण गुरुदेव हैं। समूचे संघ में आचार्य देवेन्द्र सूरि जी अधिक पूजनीय बने।
आ. देवेन्द्र सूरि जी वि.सं. 1327 में मालवा में स्वर्गवासी बने। यह समाचार समूचे संघ में जंगल की आग की भाँति फैल गया। खंभात के श्रावक भीम (भीमदेव) के हृदय पर वज्राघात हुआ। वह देवेन्द्र सूरि जी को अपने प्राणों से भी अधिक चाहता था। अतः शोक एवं दुःख के अधीन होकर 12 वर्षों तक उसने अन्न (अनाज) का एक दाना भी नहीं खाया। ऐसे प्रभावक गुरुदेव सभी के हृदयसम्राट बन गए थे।
महावीर पाट परम्परा
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