________________
साहित्य रचना :
आचार्य धर्मघोष सूरि जी की लेखन कला व काव्य कला, दोनों अद्भुत थे। उनके द्वारा रचित कुछ ग्रंथ । काव्य इस प्रकार हैं1) संघाचार भाष्य
2) श्राद्धजीतकल्प 3) कायस्थिति स्तवन
4) भवस्थिति स्तवन 5) देहस्थिति प्रकरण
6) परिग्रह प्रमाण स्तवन 7) दुषमाकाल संघ स्तवन 8) युगप्रधान स्तोत्र 9) गिरनार कल्प
10) अष्टापद कल्प 11) ऋषिमंडल स्तोत्र
12) चतुर्विशतिजिन स्तवन संग्रह 13) स्त्रस्ताशर्म स्तोत्र श्लोक 8 14) जयवृषभ अष्ट यमक स्तुति 15) सम्मेतशिखर तीर्थकल्प 16) शत्रुजय महातीर्थकल्प 17) समवसरण प्रकरण
18) लोकान्तिक देवलोक जिन स्तवन 19) लोकनालिका श्लोक 32 20) भावी चौबीसी के तीर्थंकरों के स्तवन 21) जीवविचार स्तव
22) सुअधम्मस्तव 23) मंत्रगर्भित पार्श्वनाथ स्तोत्र 24) भवत्रयस्तवन
धर्मघोष सूरि जी विद्वत्ता एवं काव्यकला में निष्णात् थे। एक बार एक मंत्री ने अहंकारपूर्वक 8 यमक काव्य कह कर सुनाए। उसने कहा कि ऐसे सुंदर काव्य अब कोई भी नहीं बना सकता। आचार्य धर्मघोष सूरि जी ने कहा ऐसा नहीं है। मंत्री ने कहा कि कोई कवि हो तो बताओ! तब आचार्यश्री ने जयवृषभ - इत्यादि 8 यमकमय स्तुतियाँ एक रात में बनाकर मंत्री को सुनाई। मंत्री आश्चर्यचकित - स्तब्ध हो गया व तदुपरान्त उनका भक्त बना व जैनधर्म से जुड़ा।
प्राकृत में आचार्य धर्मघोष सूरि जी द्वारा रचित 'रिसिमंडलथोत्तं' (ऋषिमंडल स्तोत्र) में सभी तीर्थंकरों, गणधरों, भरत-बाहुबली, चौदह पूर्वधारी, रथनेमि, विष्णुकुमार, जालि-मयालि, गजसुकुमाल, ढंढण मुनि आदि अनेकानेक महापुरुषों के वैशिष्ट्य की स्तुति है। आगमों में वर्णित अधिकांश ऋषियों का इस स्तोत्र में उल्लेख है, जो लालित्यपूर्ण है।
महावीर पाट परम्परा
151