________________
राजा सिद्धराज के बाद गुजरात के सिंहासन पर कुमारपाल आरूढ़ हुआ। उस समय आचार्य हेमचन्द्र की आयु 54 वर्ष व कुमारपाल की 50 वर्ष थी। पूर्वभव में कुमारपाल नरवीर (जयताक) नामक राजकुमार था जो कालक्रम से डाकू बन गया था एवं आचार्य यशोभद्र सूरि (जो हेमचन्द्राचार्य बने) के प्रतिबोध से सन्मार्ग पर आया एवं प्रभु पूजा में तल्लीन हुआ। इस भव में भी दोनों का सम्बन्ध गुरु-शिष्य सा था। गुरुदेव के प्रतिबोध से कुमारपाल महाराज ने श्रावक के सभी 12 व्रत ग्रहण किए एवं तारंगा, कुंभारियाजी, खंभात, पाटण आदि विविध स्थलों पर 1444 जिनमंदिर बनवाए, 16,000 पुराने जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार कराया एवं 36,000 जिनप्रतिमाएं भराई। गुरुदेव के सदुपदेश से कुमारपाल के शासनकाल में गुजरात हिंसा-मुक्त राज्य बन गया था। कुमारपाल महाराजा ने 70 हस्त-लेखकों को. आचार्यश्री की सेवा में नियुक्त किया ताकि हेमचन्द्राचार्य जी के श्रुतलेखन में कोई बाधा न आ सके। आचार्य हेमचन्द्र ने कंटकेश्वरी देवी को भी अपनी प्रतिबोध व मंत्रशक्ति से जैन बनाया।
आचार्य हेमचंद्र सूरि जी ने सुविशाल साहित्य की रचना की1. अभिधान चिंतामणि कोश ; 2. अनेकार्थ संग्रह कोश ; 3. निघण्टु कोश ; 4. देशी नाम माला कोश ; 5. सिद्धहेमशब्दानुशासन ; 6. काव्यानुशासन ; 7. छन्दोनुशासन ; 8. प्रमाण मीमांसा ; 9. अन्ययोग - व्यवच्छेदिका 10. अयोगव्यवच्छेदिका ; 11. द्वयाश्रय महाकाव्य (कुमारपाल चरित्र) ; 12. योगशास्त्र (स्वोपज्ञवृत्ति सहित) ; 13. परिशिष्ट पर्व ; 14. वीतराग स्तोत्र ; 15. त्रिषष्टिश्लाकापुरुषचरित्र इत्यादि।
वर्तमान में प्रचलित 'सकलार्हत् स्तोत्र' त्रिषष्टिश्लाकापुरुषचरित्र ग्रंथ के ही अन्तर्गत है। उनकी अनुपम ज्ञान साधना के कारण सिद्धराज जयसिंह एवं परमार्हत् सम्राट कुमारपाल ने उन्हें 'कलिकाल सर्वज्ञ' का बिरुद् प्रदान किया। श्रुत साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्राचार्य जी का अनुपम अवदान रहा। हेमचन्द्राचार्य जी के अविस्मरणीय कार्यों की स्मृति में आज भी गुजरात के पाटण में राज्यस्तरीय विश्वविद्यालय का नाम हेमचन्द्र सूरि पर है, जो अत्यंत ही गौरव का विषय है। हेमचन्द्राचार्य जी का स्वर्गवास वी.नि. 1699 (वि.सं. 1229) में 84 वर्ष की आयु में हुआ।
महावीर पाट परम्परा
131