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28. आचार्य श्रीमद् विबुधप्रभ सूरीश्वर जी
अमेय बुद्धि के धनी, जिनशासन अलंकार।
आचार्यरत्न विबुधप्रभ सूरि जी, नित् वंदन बारम्बार॥ भगवान् महावीर स्वामी की जाज्वल्यमान पाट परम्परा के 28वें पट्टधर आचार्य विबुधप्रभ सूरीश्वर जी हुए। इनके समय में कुलपाक जी तीर्थ की स्थापना हुई। दक्षिण भारत के राजा शंकर ने नगर में फैले मरकी रोग को शांत करने के लिए भरत चक्रवर्ती द्वारा माणेक रत्न से बनाई एवं अंजनश्लाका की हुई आदिनाथ जी की प्रतिमा को कर्नाटक के कुलपाक नगर में स्थापित किया। वह स्थान कुलपाक तीर्थ और प्रतिमा माणेक स्वामी के नाम से विख्यात हुई।
यह घटना वि.सं. 640 के आसपास की है।
आगम साहित्य के व्याख्या ग्रंथ के क्षेत्र में इस युग में 'भाष्य' रचे गए। नियुक्तियों की भाँति भाष्य पद्यबद्ध प्राकृत भाषा में है। नियुक्ति साहित्य में पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना मुख्य प्रयोजन था किन्तु गूढ-अर्थ को अधिक स्पष्टता से समझने के लिए भाष्य रचे गए। सुप्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आचार्य विबुधप्रभ सूरि जी के समकालीन कहे जाते हैं।
• समकालीन प्रभावक आचार्य . आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण :
ये आगमों के मर्मज्ञ विद्वान थे। मथुरा में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने 15 दिन की दीर्घकालीन तपो- साधना से देवनिर्मित स्तूप के अधिष्ठायक देव को प्रत्यक्ष किया था। इसी देव की सहायता से उन्होंने कीड़ों द्वारा लगभग नष्ट हो चुके महानिशीथ सूत्र का उद्धार किया। इनके द्वारा रचित अनेक ग्रंथ प्रसिद्ध हैं1) विशेषावश्यक भाष्य - आवश्यक सूत्र (आगम) के प्रथम अध्ययन सामायिक सूत्र
पर यह भाष्य आधारित है। इसमें 3603 गाथाएं हैं। इसमें अनेकविध विषयों का
महावीर पाट परम्परा