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29. आचार्य श्रीमद् जयानंद सूरीश्वर जी
धर्मोपदेशक, प्रखर व्याख्याता, कोटि जीर्णोद्धार । जिनागम सिंधु जयानंद जी, नित् वंदन बारम्बार ॥
आचार्य विबुधप्रभ सूरि जी के पश्चात् आचार्य जयानंद सूरि जी शासनपति महावीर स्वामी के 29वें पट्टप्रभावक हुए। वे प्रखर उपदेशक कहे जाते हैं। उन्हीं के सदुपदेश एवं पावन प्रेरणा से प्राग्वाट (पोरवाल) मंत्री सामंत ने परमार्हत् सम्राट सम्प्रति द्वारा निर्मित 900 मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया क्योंकि शताब्दियों बाद वे शोचनीय अवस्था में आ गए थे। हमीरगढ़, वीजापुर, वरमाण, नांदिया, बामणवाड़ा एवं मुहरीनगर इत्यादि स्थानों पर भव्य रूप से जीर्णोद्धार कराए गए।
वे समयज्ञ आचार्य थे। उन्होंने नूतन जिनमंदिरों के निर्माण से पहले प्राचीन ऐतिहासिक जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार पर बल दिया। यह विरासत युगों-युगों तक विद्यमान रहे, ऐसी उनकी परमोत्कृष्ट भावना थी। वे विक्रम की सातवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए । उल्लेखानुसार करहेड़ा तीर्थ में पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा भी उन्होंने कराई |
इनके काल में कोट्याचार्य महत्तर, आ. सिंह सूरि जी, आ. मानतुंगसूरि जी, दिगंबराचार्य 'अकलंकदेव इत्यादि महापुरुष हुए।
समकालीन प्रभावक आचार्य
आचार्य मानतुंग सूरीश्वर जी :
भक्तामर स्तोत्र एवं नमिऊण स्तोत्र जैसे सुमधुर उच्च कोटि के काव्यों के रचनाकार आ. मानतुंग सूरि जी अपने युग के एक यशस्वी विद्वान थे। प्रथमतः उन्होंने दिगंबराचार्य चारुकीर्ति के शिष्य महाकीर्ति के रूप में दीक्षा ग्रहण की किंतु सांसारिक बहन के प्रतिबोध से श्वेतांबराचार्य अजितसिंह (जिनसिंह) के शिष्य मानतुंग के रूप में संयमवेश धारण किया। वे बुद्धि के धनी व कुशल काव्यकार थे। अपनी योग्यता के बल पर वे आचार्य पद से विभूषित हुए ।
महावीर पाट परम्परा
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