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हमारे गले की पुष्पमाला विकसित है। हम मनुष्य नहीं, देवांगनाएं हैं। गुरु भक्ति से प्रेरित होकर हमेशा वंदन करने आया करती हैं। ऐसे महाप्रभावक बालब्रह्मचारी विद्वान आचार्य के शील व संयम के विषय में ऐसे दुष्ट विचार लाना तुम्हारी विवेकशून्यता है।" यह सब सुनकर वीरदत्त श्रावक बहुत शर्मिन्दा हुआ। अपने दुर्भाव व दुर्व्यवहार के लिए उसे बेहद पश्चाताप हुआ। उसने सभी से क्षमायाचना की। मानदेव सूरि जी के कहने पर देवी ने उसे बंधनमुक्त किया।
तत्पश्चात् वीरदत्त ने तक्षशिला नगरी का बुरा हाल बताते हुए वहां पधारने की विनती की एवं श्रीसंघ का निवेदन पत्र भी मानदेव सूरि जी को सौंपा। आचार्यश्री ने कहा - संघ सर्वोपरि है। संघ की आज्ञा पालन करना मेरा कर्त्तव्य है परन्तु कुछ कारणवश इस समय तो मेरा तक्षशिला आना संभव नहीं हो पाएगा। किंतु संघ का संरक्षण मेरा अभिन्न दायित्व है। मैं यहाँ बैठा ही तुम्हारे उपद्रव की शांति करने का पूर्णतः प्रयत्न करूँगा। ___ अतः विशिष्ट शक्तिशाली मंत्राक्षरों से युक्त लघु शांति स्वरूप 'शान्ति स्तव' रचा तथा उसकी आराधना की संपूर्ण विधि वीरदत्त श्रावक को बताई। गुरु महाराज का दिया हुआ शांतिस्तव वीरदत्त लेकर पुनः तक्षशिला चला गया। गुरु द्वारा बताई गई विधि से शांति स्तव का पाठ करने से संघ में हर्षोल्लास का माहौल छा गया। नगर में सर्वत्र शान्ति हो गई। जो उपचारहीन बताया जा रहा था, ऐसे मरकी रोग का लघुशांति द्वारा निवारण हुआ एवं लाखों लोगों के प्राण सुरक्षित हुए। __ जैन एवं जैनेत्तर सब लोगों ने आचार्य मानदेव सूरि जी एवं जैनधर्म का महान् उपकार समझा। जब माहौल सामान्य हुआ तथा सभी को जीवनदान मिलने की अनुभूति हुई, तब उन्हें शासनदेवी की तक्षशिला भंग की चेतावनी का ध्यान आया। धीरे-धीरे लोगों ने वहाँ से निकलना चालू कर दिया। जितनी हो सकी, जिनप्रतिमाओं को उन्होंने सुरक्षित स्थानों पर भिजवा दिया। 3 वर्षों के बाद तुर्को ने तक्षशिला पर आक्रमण कर वहाँ के मनुष्यों के संहार एवं संस्कृति के ध्वंस द्वारा तक्षशिला जैसी सम्पन्न नगरी को भंग कर दिया। अनेकों जिनमंदिरों की इस प्रकरण में क्षति हुई। उसके कई अरसों बाद बादशाह गज़नी ने तक्षशिला का पुनरूद्धार किया तथा उसका नया नाम 'गजनी' रख दिया।
लघु शांति में श्री शांतिनाथ भगवान्, श्री पार्श्वनाथ भगवान् एवं जया-विजया देवी की स्तुति की गई है। स्तोत्र के अनुसार इसका पाठ करने से जल, अग्नि, विष, सर्प, राजा, दुष्टग्रह,
महावीर पाट परम्परा
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